नै साल की पार्टी बल

 

उत्तराखंड की लगूली

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नै साल की पार्टी बल 
"सुबेर-सुबेर घपरोल"

श्रीमती जी(बड़बड़ांद)," । झाड़ू पौंछा लगाणो आपर काम खुणि तो ये आदमिन ब्वारी मा नौकरानी लगवे याल अर मि यूंक लदोड़ी फुकणो ,हमेशा चुल्लू पर हि फुखेणु रौल क्य?
इन नि सूचणू कि ब्वारी तैं समझों कि बेटा "
खाणो बणौन बि सीख ,गढवालि सीखणो जयीं बल। " गढवालि त दगड़ रैकि सीख हि जाऽलि।"
श्रीमान जी," क्य छै तू मंतर सि बड़बड़ाणी सुबेर बिटी ।आज त चुप रै। ब्यखुनि दफै नै साल कू पार्टी च बल। धरमू बताणो छै।"
श्रीमती जी," हे ब्वे ! क्य ज्वान बण्यूं च। "बूढी घोड़ी बल अर लाल लगाम!। घुटकि लगाणो चक्कर मा खुश ह्वाल हुयूं। फिर सर्रा रात इक्कू गाणा ," सतपुलिक सैणा मेरी बौ हे . . हो . . . ।
श्रीमान जी," बच्चोंक खुशि मा हि हमार खुशी च। जादा कड़कड़ाट नि कैर। नै साल कु स्वागत खुस ह्वैक कैर।"
श्रीमती जी," हमारु नै साल त चैत बिटीक शुरु हुंद।मिन त आज तक नि मनै इकतीस दिसमबर। तुमार घुटकि लगाणो चक्कर मा नै साल च। "मुंह मा न बल दांत अर् पेट मा न आंत" तब रैलु वे पीजा,बर्गर,हाऽट डॅाग दस घण्टा तक चप-आ-चप लग्यूं . . ।"
श्रीमान जी," अच्छा:मि बच्चों खुणि बुल्दू कि "होटल से कुछ नहीं आयेगा। आज सारी गढवाली डिस घर में बनेंगी नये साल में । वो भी तुम्हारे माँ के हाथ की बनी। तैयार छे तू।"
श्रीमती जी," बस बढि ग्या न ब्लड प्रेसर। ह्वै ग्या हिंदी शुरु। शाम खुणि त एक घूंटो बाद अमेरिकन हिंगलिश शुरु। मिन त कुछ नि बणोन.
अर ना म्यार घारम हल्ला मचाणो क्वी जरुरत।वक्खि चलि जा वीं आपरि पुष्पा बौक घार।"
श्रीमान जी," इन बुल्दि कि आंदु हि नी च गढवालि डिस बणोन। अहा!
भर्यां स्वाल,बाड़ी,फाणु,गुलगुला,
मर्सा कू हलवा, गैथु पत्वड़ा, पल्यौ ,चुनूक भरिं र्वटि। कुछ नि आंदू त्वे तैं।बथ करणि च वखम।पुष्पा बौ तैं तो सब्बि धाणि बणोन आंदु।
हल्ला नि कैर जादा , एक कूला चाय ला इस्टील को गिलास पर।
त्यार त सुबेर-सुबेर यी ही काम च। चर चर ,बड़ बड़ बकबास शुरु करण."
श्रीमती जी,"न इन बतौ! कि तुमते आज तक कू खलाणू रै। मि कि तुमार वा पुष्पा बौ।ठिक त ब्वाल मिन कि हमार नै साल "चैत"कु मैना आंदु।"
श्रीमान जी," हाँ, यू गाणा बि त च कि
"कब आलू मैना चैत को, , जब तू जैलि मैत को।" हा !हा! क्य बढिया गीत बणि गै। ऐसे हि थोड़े लोग हमें कवि बोलते हैं।"
श्रीमती जी," नरभै कवि? आपर गिच्च मियां मिट्ठू बणौ जरुरत नि।समझि ग्याव ।
तुमते हि त मिल वख राष्ट्रपति साहित्य रचना पुरस्कार.जन बुलैंद।
हाँ,हाँ । चलि जौलु चेैत मा मैत। ना मिन चाय बणाण या अर् न कुछ खाणो बणोण।
मनै ल्याव नै साल ।सौ बात क एक बात। बस।"
श्रीमान जी," पर आज साल कू आखरि दिन च आज त बणै दी यार।" सर्रा ढिभरी बल मुण्ड माण्डि अर् पूंछ को बखत टैं फैं "
पर मिन त कुछ नि ब्वाल।
. . . घपरोल जारी. . .

(लिख्वार:विश्वेश्वर प्रसाद सिलस्वाल"घपरोल्या") 

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