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जिंदगी
जिंदगी ...... जिंदगी
......
बंद करने और खोलने में
जिंदगी ......बंद करने
और खोलने में
निकल गई जनाब
देखो ......देखो देखो
..... गोल थी वो शायद
गोल थी वो हा... हा... हा
हाथों से वो देखो फिसल
गई
जिंदगी ......बंद करने
और खोलने में
निकल गई
बालकृष्ण डी ध्यानी
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