उत्तराखंड की लगूली
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"सुबेर -सुबेर घपरोल़"श्रीमान जी," यार,म्यार वू गरम सुलार अर खाखी गरम कमीज नि मिलणी। जाड्डू ह्वे गे भौत।"
श्रीमती जी," मिलण बि नी च वून। अर जाड्डू तुम खुणि हुयूं व्हाल जन बुलेंद। सर्रा दुन्या खुणि तो जून को मैना लग्यूं व्हाल."
श्रीमान जी," जादा गिच्चू नि चलौ सुबेर-सुबेर। क्य मतबल कि मिलण बि नी च ।"
श्रीमती जी," मिन तुमार सब्बि पुराण कपड़ा दान कैरि देन। सिरफ द्वी-द्वी जोड़िक रख्यां छन।जू नै खरिदान छन धरमूक ब्योक टेम को।"
श्रीमान जी," त्यार दिमाग खराब त नि च। अर कच्छा बनियान तो एक बि नी च छुड्यूं"।
श्रीमती जी," वूं पर दूँ हुयां छ्याइ। शरम नि आंदि छै पैरिक, बल पुटक कैन दिखणा। अरे जब नयेक सुखाण डालऽद छै म्यार मैतम. त मितै बि शरम आंदि। तुम खुणि त शरम नाम की क्वी चीज नि च।"
श्रीमान जी," अच्छा। रुक जरा। ब्वारी तैं आफिस जाणि दी। मिन जो त्यार चार आलमारी मा किट्यां धुतड़ा अर छक्यण्या सूट छिन,वू सब्बि भैर चुट्ये दिणान।"
श्रीमती जी," खबरदार !जो हथ ब लगै तो। तुमार झुल्ला म्यार बड़ी अटेचि मा किच्यां छन. बस वखऽन निकलो अर लटकाव तै मच्छर सि सरील पर। ब्वारी बि नराज छै हुणि। बल, हर जगा बाबू जीक कपड़ा फैल्यां रंदान।"
श्रीमान जी,"अच्छा। तो अब ब्वारी तैं बीच मा लाणि छै आपर बचौ मा। पता च, कि मि ब्वारी खुणि कुछ नि बुलदु"।
श्रीमती जी," कुछ बि समझो तुम।
श्रीमान जी," जा तो सै तू, कीर्तन मा। मिन त्यार बि चार हि जोड़ी रखिक बाकि सब्बि त्यार झुल्ला बि भैर चुट्ये दिणान।!
श्रीमती जी," देखि लेन हाँ। पता च . वू आलमारी अर कपड़ा म्यार मैत बिटी अयां छन या ब्वारिक लयां छन।"
श्रीमान जी," अच्छा !पैंतिस साल बिटी तेखुणि मि एक लत्ता नि लायूं क्य?
श्रीमती जी," द्वी कौड़िक। जनि वूं तैं पैरों तनि दर दर चिरे जांदा छ्याइ। अब वू मान एक नि बच्यूं।
श्रीमान जी," पुराणो तो मि बि ह्वे ग्यों। तेरी गौं आंदि त कैदिन मितै बि बेची आंदि।
श्रीमती जी," दिमाग मा कत्ति बेर आइ त छैं च। पर क्वी द्वी पैंसा भि नि दिण्याँ।
श्रीमान जी," क्य ब्वाल तिन । मिन सुण नि ढंग से।"
श्रीमती जी," मिन तो कुछ नि बोलि। गुप्ता जीक दुकान खुलि गे ह्वेलि, आफ खुणि नै कच्छा बनियान लेकि आवा झट्ट । पाणि गरम हुयूं. . .
. . . . घपरोल . .जारी.
(लिख्वार:-विश्वेश्वर प्रसाद सिलस्वाल "घपरोल्या)
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