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*घौ*
*शीला का घौ त दिखें जंदन,*
*पर जिकुड़ी का घौ दिख रहा है!*
*जिकुड़ी का घौ गैरा अर हलका हुंदन,*
*अपड़ों का दिया घौ गैरा हुंदन!*
*परयों का दिया घौ त मौल भी जंदन,*
*पर अपठनों का दिया घौ नासूर बनदन!*
*ब्याटा का करड़ा बचाना बुबा कु,*
*इन घौ करदन कि बिगड़ा जांद!*
*जिकुड़ी का घौ म न क्वि लराट न कराट,*
*न क्वी मलम न क्वी पट्टी!*
*न हक़ीक़त न क्वी इलाज,*
*बचन बाण जन चीर दिंदन जिकुडी थां!*
*हां जिकुड़ी का घौ मौल भी सकदन,*
*जब घौ दिंदरा झुक जौन!*
*अर खुले दीयून जिकुड़ी के गेड़,*
*ल्यून सौं कि अब नि डियूला क्वी घौ!*
*ओ पी पोखरियाल* जी
अतुकांतआभार धाद लोकभाषा अभियानगढ़वालीगोविन्दराम पोखरियाल 'साथी'विधा
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