जांठू/ टेक्वा

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जांठू/ टेक्वा

विधा -अतुकांत


"जांठू टेक्वा"

उजड़दि कूड़िक,

 छज्या मा बैठिक 

सालों साल तक

 आंखि बिछैक

वैकु जग्वालऽ कैरि,

जू छ्याइ वैकु लाठू

आखिरी सारौ

बुढापो क जांठू ,

वू लौटि

भैर देस बिटी

पर,

धार हि धार,

गौऽक मंदिर मा

माथा टेकि

चुपिक सरिक 

गै फेर परदेस,

तरसदिआंख

अटकदि सांस

बुबा क

जिंदि छिन

अब्बि भि

फर वैकु

जग्वाल मा,

मंगला दादा

सुणाणौ छै

मितै,

अपणि व्यथा

गौऽक छज्या मा बैठि,

टुकुर-टुकुर 

डांडि कांठ्यों क

पंगडंडि तैं हिरद- हिरद,

मंगला दादा कि

बगदि आंख्युक

पाणि,

बताणि छै

मितै

वूंक बुढापो टेक्वा

जांठू  क

फिर से

जग्वाल को ।।


@ विश्वेश्वर  प्रसाद सिलस्वाल. 

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