"बग्वाळ कुछ खास"


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"बग्वाळ कुछ खास"

 गढ़वाळि कविता


हमारा पाड़ौं मा बग्वाळ,कुछ यनि खास होंदि। 

दुख्यां दिलौं मा उलार,मुखड्यूं मा आस होंदि।


देश परदेश जयां अपणों कि,जाग जगवाळ।

आँख्यों कि टक्क अर,मिलन कि प्यास होंदि।


दिसा धियांण्यों मैतुड़ै खुद,ब्वै बाबे बाडुळि।

सांख्यों भ्यट्योंणा तैं,अटकीं सास बास होंदि।


दिवा त्योला जगौणैं,भैला ख्यनै भारि इच्छा।

मन का भितर गैरि खुशी,हर्ष उल्लास होंदि।


स्वाळा पकौड़ा गुलगुला,बणौंणा बड़ु तिवार।

तैका त्योला चणौणै,भलि रीत रिवाज होंदि।


पैंणा पाता बांटणै मनसा,घर घर खूब रौंदि। 

खांण प्योंणै बढ़िया बार,गिच्चै मिठास होंदि।


जग मग उज्याळौंन,घौर म्वोर खातरा सजौंणै। 

थढ़िया चौंफला झुमैला लगौंणै,परयास होंदि।


माता लक्ष्मी इष्ट द्यबतौं,आसरिवाद छत्र छाया।

रिद्धि सिद्धि किरपा दृष्टि,जसौ बिस्वास होंदि।



सर्वाधिकार सुरक्षित 

     रचना 

राजपाल सिंह पंवार 

     रुद्रप्रयाग 

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