आधुनिक बेताल चौबीसी ( कथा - 11 )-ईमानदारी की डिग्री


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आधुनिक बेताल चौबीसी ( कथा - 11 )
ईमानदारी की डिग्री
अनुभवी विक्रम यह जानते थे कि बाधाएं आने के बावजूद जो अपने उद्देश्य प्राप्ति में लगा रहता है, वह देर सबेर सफल जरूर होता है। उन्हें पता था कि बेताल के सवाल असीमित नहीं हो सकते हैं और साथ ही यह भी जरूरी नहीं है कि वे बेताल द्वारा पूछे जाने वाले सभी सवालों का सटीक जवाब जानते हों। दोनों ही स्थितियों में वे तांत्रिक को मुर्दा पहुँचाने में सफल हो जायेंगे।
वे फिर पेड़ से मुर्दा उठाकर अपनी नगरी की ओर चल पड़े। पूर्व की भांति बेताल बोला, " राजन, बेताल होते हुए भी मुझे तुम्हारे साथ रहने में न जाने क्यों वो सकून मिल रहा है जिसे पाने के लिए ऋषि - मुनि तक व्याकुल रहते हैं। बहरहाल, आज का मेरा सवाल जितना सरल लगता है, इसका जवाब उतना ही कठिन है। मैं यह जानना चाहता हूँ कि ईमानदार आदमी को कष्ट क्यों झेलने पड़ते हैं और बेईमान आदमी मौज क्यों उड़ाता है ?"
राजा विक्रम बोले, " हे बेताल, ऊंची डिग्री पाने के लिए कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। इंसान को ईमानदारी की डिग्री तभी मिलेगी जब वह सारे प्रलोभनों को ठुकराते हुए अपने कर्तव्यों का सम्यक निर्वहन करेगा। ऐसे में कठिनाइयां झेलना तय है। सोने की परीक्षा तो आग में तप कर ही होती है। रही बेईमान आदमी की मौज उड़ाने की बात तो वह सिर्फ दैहिक सुख भोगता है। मानसिक रूप से वह सदैव बीमार रहता है लेकिन उसकी यह बीमारी सभी को नहीं दिखती है। " " तो ठीक है राजन ! इस मुर्दे को पाने के लिए आपको भी अभी और तपना है। "
ऐसा कहते हुए बेताल फिर मुर्दे को लेकर भाग निकला।

- सुभाष चंद्र लखेड़ा
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