उत्तराखंड की लगूली
उत्तराखंड देवभूमि I अनछुई सी तृप्ति I ढुंगा - गारा I आखर - उत्तराखंड शब्दकोश I उत्तराखंड I गढ़वाली शब्दों की खोज I कुमाउनी शब्द संपदा I उत्तराखंडी यू ट्यूब I कवितायें I कुमाउनी शब्द संपदा I उत्तराखंडी यू ट्यूब I उत्तराखंड संस्कृतिI कवितायें
आधुनिक बेताल चौबीसी ( कथा - 13 )
उत्तम पुरुषविक्रम के लिए अब यह एक लुका - छिपी का खेल हो गया था। बेताल सवाल पूछता और राजा जवाब देते और जवाब मिलते ही विद्रूप हंसी के साथ बेताल फिर सिरस के पेड़ पर लटक जाता था।
खैर, धैर्य को न खोते हुए विक्रम गए और फिर मुर्दे को कंधे पर डालकर चल पड़े। अभी वे मसान की सीमा से बाहर निकले ही थे कि बेताल बोला, " राजन, मैं आपको उत्तम श्रेणी के पुरुषों में मानता हूँ क्योंकि निम्न श्रेणी के पुरुष विघ्नों के भय से किसी नये कार्य का आरंभ ही नहीं करते। मध्यम श्रेणी के पुरुष कार्य तो आरंभ कर देते हैं पर विघ्नों से विचलित होकर उसे बीच में ही छोड़ देते हैं, परन्तु उत्तम श्रेणी के पुरुष बार-बार विघ्न आने पर भी प्रारंभ किये गये कार्य को पूर्ण किये बिना नहीं छोड़ते हैं। मेरा आपसे सिर्फ यह सवाल है कि इस कार्य का अंतिम परिणाम क्या होगा, इस पर मनन किये बिना आपने यह कार्य हाथ में क्यों लिया ? "
विक्रम हँसते हुए बोले, " बेताल, अगर एक राजा हमेशा अंतिम परिणाम के बारे में विचार करता रहेगा तो मुझे नहीं लगता कि वह कोई भी कार्य प्रारम्भ कर पाएगा। और राजा ही क्यों, सामान्य मनुष्य भी संतानोत्पति सहित बहुत से ऐसे कार्य करता है जिनका अंतिम परिणाम वह कितना भी विवेकशाली क्यों न हो, कभी नहीं जान सकता है। बहरहाल, मुझे जो कर्म उचित लगता है, उसे पूरा करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ।"
विक्रम के जवाब को सुनकर बेताल बोला, " राजन, आपके विवेक के आगे मैं नतमस्तक हूँ। " इतना बोलकर वह राजा के देखते - देखते फिर सिसर के पेड़ पर जाकर लटक गया।
- सुभाष चंद्र लखेड़ा
#आधुनिक_बैताल_चौबीसी_सुभाष_चंद्र_लखेड़ा
0 टिप्पणियाँ