उत्तराखंड की लगूली
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आधुनिक बैताल चौबीसी ( कथा -3)
कर्म फल
राजा विक्रमादित्य लौटकर फिर उस सिरस के पेड़ से शव को उतार कर अपने गंतव्य की ओर चले तो बैताल बोला, " हे राजा विक्रम, मैं तुम्हारे धैर्य का कायल होता जा रहा हूँ लेकिन मैं तुम्हें यह भी बता दूं कि इस दुनिया में तुम्हारे जैसे धैर्यशाली लोगों की कमी नहीं है। उदाहरण के लिए भारत में ऐसे लोग करोड़ों की संख्या में हैं जो अपनी गरीबी से मुक्त होने का इन्तजार कई दशकों से से कर रहे हैं। इनके धैर्य का जवाब नहीं। सरकारें बदलती हैं किन्तु इनकी हालत में परिवर्तन नहीं होता है। राजन, क्या तुम मुझे पेट भर भोजन के लिए तरसने वाले इन लोगों के असीम धैर्य की वजह बता सकते हो। "
बैताल के इस चुभते सवाल के जवाब में राजा विक्रम दुखी स्वर में बोले, " हे बैताल, सदियों से ऐसे सभी लोग गरीबी को अपने पूर्व जन्मों के कर्मों का फल मानते आये हैं। फलस्वरूप, वे खुद को दोषी मानते हुए इसको धैर्य पूर्वक झेलने के लिए संस्कारित हैं । "
विक्रम का मौन भंग होते ही बैताल " हे विक्रम, मैं तो वापस चला " कहते हुए फिर अपने पेड़ पर जा पहुंचा। (क्रमशः - 4 )
स्वरचित सादर
सुभाष चंद्र लखेड़ा
विज्ञानकु
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