ज्योतिर्मठ

उत्तराखंड की लगूली

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ज्योतिर्मठ
थर-थर थर-थर कांप रहे हैं।
पग-पग अपने माप रहे हैं।
देव मनुज ज्योतिर्मठ के ये।
कोसते भाग्य को ताप रहे हैं।।
हिरण्यकशिपु की बलि को नृसिंह, खम्बे से उत्पन्न होंगे।
प्रह्लाद के उद्धार में समय बहुत है, नारायण दरस न देंगे।।
फिर से होलिका जलेगी ,
चिता पर चढ़ जाप रहे हैं।
थर-थर थर-थर कांप रहे हैं,
पग-पग अपने माप रहे हैं।।
नारायण को पाना हो तो, तुझे नार में बहना होगा।
धीर धीरे बह रहे हो तुम तो, दुःख भारी ये सहना होगा।।
तेरे भाग्य की रेखाओं पर,
कुत्ते हड्डी चाप रहे हैं।
थर-थर थर-थर कांप रहे हैं,
पग-पग अपने माप रहे हैं।।
शंकराचार्य की धुनि मिटेगी, किसकी भस्म रमाओगे तुम।
ज्योति तेरी ओझल होगी, कैसे सन्मार्ग दिखाओगे तुम।।
बांध बांधकर हिरण्यकशिपु,
अपने पर्चे छाप रहे हैं।
थर-थर थर-थर कांप रहे हैं,
पग-पग अपने माप रहे हैं।।

डॉ सुशील सेमवाल
पुराणेतिहासाचार्य

अध्यात्म प्रकोष्ठ सप्तर्षिकुलम् 

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