उत्तराखंड की लगूली
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विधा अतुकान्त
*गाँठु*
*छ त तिसुता काला धागा,*
*पर बंध्यूँ च गाँठु!*
*कंडली का पत्ता म बैं खान्दा,*
*कु राखु मंतरी की रौखली!*
*मंतरी लौंग सुपरी, चंदरोली*
*हाथी दाँत, सुंगरा लटुला!*
*से बणदु छो यु गाँठु*
*नजर, बथों, हंकार, फिंकार,*
*अला बला, रौल बौल!*
*हाक, दाग़, खलयूँ, घुस्यूँ,*
*छैल, छिद्र, अंच्छरी, रुक्मणि!*
*अयेड़, डागण, छाया, मसाण,*
*शैद, रैम, भूत, पिचास, गस!*
*सब भगै दींदू छो यु गांठु*
*ढूंढप्रयाग म छाया पुजणु,*
*बक्यों म नवारा लेकि बाक़!*
*बुलाणु जा चा न जा,*
*धार, गाड़, गदिना, चौबट्टीया!*
*पुजण म मैर मारा या छोड़ा,*
*कुछ भी कैरा चा नी कैरा!*
*अर योक गाँठु शाबरी म,*
*मंतरे की गौला ऊँदु पैर द्या!*
*जु धार केर, शिकार,शराब कु,*
*पौ परेज कैर द्या त!*
*सब अला बला अफ दगड़ी,*
*लीजांदु छो यु गाँठु!*
*केवल गाँठु नि छो यु,*
*य छै मनखी का विश्वासै, आसै पुड़िया!*
*सब दुख बिमारी भगे दींदू छो यु गाँठु!*
*ओ पी पोखरियाल*
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