उत्तराखंड की लगूली
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"गांठु"(तावीज़).
भाग्यू़ं धार हि धार
कै तरै बि
हो मंगतूक
उपचार,
डाक्टर बुलै
जागरि बुलै
पर फरक
क्वि ना।
ह्वे क्य बल
पता कैतें ना,
बल तांत्रिक
एक भौत
जणकार
वू गांठु से
करदु उपचार
मंगतू बैठ सामणि
तांत्रिक जागरिन
निकाऽल गांठु
बांध मंगतूक
गैऽलि पर
बल अब
बौल्यापन
भगै याल ,
दिण प्वाड़ंल
रुप्या पांच सौ हर साल,
पर मिन ब्वाल
जागरि जी
द्वीलु तो मि हर साल
पर पैलि
ह्वे क्य
यो तो बतौ
अर फरक
अणो पर
हुण तो द्यावो
मि बिस्वास,
तांत्रिक जी
तुमार उमर क्य,
बल चालिस साल
अर ग्वाल बाऽल
बल एक बि ना,
कन कुन्नस ,
ब्यो नि कैरि
बल कैरि
पर कज्याण
भाजि गै,
फिर गांठु किलै
नि पैरि,
बल हम
पर असर नि करदु,
मिन बोलि
गर तैं पर
हि असर नि करदु
तो मंगतू पर
कन क्वै,
अब्बे गांठु
ना
बल्कि ब्योलि
वेकि मैत
भागिं
वांकि छै
मंगतू हुयों
बौल्या,
भोल वापिस
आलि तो
बौल्यापन
खतम।
दुन्या
झणि किलै
यूं तांत्रिको
चक्कर मा
पुड़दि,
अरे
जब वेकु
गांठु
वेकु हि भऽलु
नि करदि
तो
त्यार क्य
भलु
कारलु
यू गांठु । ।
@विश्वेश्वर प्रसाद सिलस्वाल
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