गिफ़्ट .०२

उत्तराखंड की लगूली

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गिफ़्ट .०२
स्यौंण से पैलि ( सोने से पहले )
———————————— स्वरचित
खटाई - मिठाई पर
बचपन के दिनों की एक बात याद आई
अपने पहाड़ में अधिकांश लोग
फ़ौज में नौकरी करते थे …….
ख़ासकर फ़ौजी लोग
२ महीने की छुट्टी में ही
घर आते थे ……..
अधिकांशतः गाँव के रास्ते
पैदल के होते थे
फ़ौजी जी
गाँव के रास्ते में पैदल चलते हुए
गाँव के रास्ते से गुजरते हुए
जो भी बड़ा बूढ़ा बच्चा
सामने दिख जाए
उन्हें टॉफ़ी , लेमनचूस , चना - लैंची ……. इत्यादि
बाँटते हुए
अपने घर की ओर बढ़ते थे
ऐसा व्यवहार रिश्तों में मिठास घोलने से
कम नहीं होता था ……
गाँव के किसी भी परिवार के
जो कोई भी गाँव से बाहर रहने वाले
जब अपने घरों पर आते थे तो
सारे गाँव के लोग उनके घर पर
राज़ी प्रसन्नता जानने के लिए
पहुँचा करते थे
और बाद में वह भी
घर घर जाकर
सबसे मुलाक़ात किया करते थे …….
ख़ासकर
फ़ौजि लोगों के घर पर तो
फ़ौज वाली मिठाई 
👌
 की तो
बात ही कुछ और थी
बड़े मान सम्मान मर्यादा के साथ
उस मिठाई को पेश कर
“ वयस्कों का “
आदर सत्कार किया जाता था ……..
किसी भी परिवार के सदस्य
के घर आने पर
वह परिवार घर घर जा कर
पूरे गाँव में मिठाई बाँटते थे
जिससे सब लोगों को मालूम भी पड़ जाता था
कि फ़लाँ व्यक्ति छुट्टियों में आ रखा है …….
आज के वक्त में देखते हैं तो
कौन कब आया ?
और लौटकर वापस कब चला गया
कई बार तो हवा तक नहीं लगती ……
ऐसे ही जब तब मायके में अपनों से
मिलने गई बहु बेटियाँ
मायके से जब ससुराल लौटती थी तो
अपने मायके से लाये हुए
कलेवा ( पूड़ी पकौड़ी , आरसे , मिठाई….. )
को पूरे गाँव में पहुँचाती थी
कलेवा बँटते ही
पता लग जाता था कि
फ़लाँ बहु बेटी मायके से आ गई है ……..
हम पहाड़ के लोग बहुत ख़ुश क़िस्मत हैं
आज भी हमारे पहाड़ में
हमारे रति रिवाज
हमारी दिनचर्या
हमारी संस्कृति
हमारी सभ्यता
काफ़ी हद
तक बची हुई हैं ……..

क्रमशः …….. ०३
🙏🌹
 सादर 
🌹🙏
इं० विष्णु दत्त बेंजवाल “अबोध “


बालकृष्णा डी. ध्यानी

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