प्रेम भी तब होता***Hindi poetry written by Damayanti Bhatt

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प्रेम भी तब होता

दुख से ज्यादा अपना कौन
प्रेम भी तब होता
जब पीडा अपनी सीमायें तोड देती
झूठ की बुनियाद पर रखे
रिश्ते न निभाने पडे किसी को
प्रेम के लिए तरसना न पडे किसी को
कुछ बीज जमीन मैं ही पनप जाते
बाहर की आबो हवा से दूर
उनको मिट्टी का गुण धर्म
खूबसूरत बनाता है
ऐसे ही हमारा भी प्रेम है
हम मिले नहीं
ठंड मैं भी
अंदर तक पिघला देता है
एक भाषा है
जो महसूस की जाती है
प्रेम विरह
आंसू हंसी
भावों और परिहास की यात्रा
नये साल की आहट
आ रही
बडी मासूमियत से
पर अभी पिछले साल का हिसाब
चुकाना है
बिजली पानी राशन का बिल
नया साल हर्ष और उल्लास
उनसे पूछो
जिनको पगार नहीं मिली
जिनका रोजगार छिन गया
ब्रह्मराक्षस फिर आने लग गये द्वार
नजदीक आने वाले हैं शायद चुनाव
एक विचार आता
फिर चला जाता
इस साल फुर्सत बहुत थी
इत्मीनान था
पर तन मैं प्राण सिसक रहै थे
निर्जीव और खामोश रिश्तों को
निभाते हुए
समय फिर नयी पीडा ले कर आया है
दिख तो नहीं रहा
पर महसूस किया जा सकता है
नव वर्ष का हर्ष
जब खुद न हों आत्मनिर्भर ।

दमयंती

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