उत्तराखंड की लगूली
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*पाँच पंचक*
१
वोट मेरु
भडू तौं कु
पाणी मेरु
तीस तौं कि
जमीन मेरी
हळया तौं कु
नाज मेरु
कुठार तौं का
रसौड़ू मेरु
लदौड़ी तौं की
मितैं क्या दिनी रे
विकास ! त्वेन
घुनत्या ?
२
क्वै भजैन
क्वै भाजिन
द रे विकास
रीता कनु
आई तू पाड़ौं मा।
३
कब्बी दबिन
कब्बी रौड़ी बगिन
अब रयीं सईं
दड़-दड़की चीरिन
ऐ...रे विकासऽऽ ?
छ रे ! कुछ हौर ?
बिणासौ विज्ञान
तै बि बुलौ दों बल।
४
ना पूछ बाबू !
अब त आदत पड़िगे
रूण-धूणें-डाड मने
थौकि कि जमाणें
ज्यूँरा का छवाड्याँ
अवशेष टीपणें
नै कुटमणा जिमाण-जंपणें
स्वेंणा सजै, हैंसणें
अर फेर
डाड मारी पच्छाड़ खाणें
ये शरेल मा सांस तलक।
५
द्यबता बसायी छौ, द्यबतोन
आस्था लूटी तुम सब माबुतोंन
अब किलै छन डाड मना
जब पाप करि सब्योन।
©® बलबीर राणा ‘अडिग‘
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