उत्तराखंड की लगूली
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*इन भी त नीच*
बल जमनु बदले ग्या, मनखी बदले गिनी,
मनख्यात बिल्कुली मोर गे हो, इन भी त नीच!
रीति रिवाज बदले गिनी, गीत संगीत बदले गिनी,
शुभ कारिजूं म मांगल नि लगणा हून, इन भी त नीच!
नन तिन आधुनिक बणी गिनी, मतण चर्या ह्वे गिनी,
पर सभी संस्कार भूल गे हून, इन भी त नीच!
बल कजे दंगल्याणा छन अपड़ी जननियूँ थैं,
पर द्वी झणा म पिरेम बुसग गे हो, इन भी त नीच!
पाड़ूं म जमीन दरकणी च जगा जगा,
विकास का नौ पर, प्रकृति दगड़ी छेड़ा कना छन,
पर जमीन बचौणु क्वी कुछ नि कनु हो, इन भी त नीच!
हे रे मनखी अपड़ी जगा जमीन न छोड़,
आगास म उड़ी ले, खुला बथों म ले ली थौ,
आण तिल जमीन पर ही च,
इनी च इनी च अर इनी च!!!!
@ © ओ पी पोखरियाल
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