बाँसुरी कि धुन - अमरीकी लोककथा

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बाँसुरी कि धुन

अमरीकी लोककथा

अनुवाद जनप्रिय लेखिका
सरोज शर्मा


एक दा गौं मा एक नौन रैंद छा, वैका ब्वै बुबा बचपन मा हि चल बसिन। ऐ दुनिया मा वैक क्वी भि सगू नि छा, वैका जन्म लीनदा वैकि ब्वै मोर गै, सब्या लोग वै कैनी बोलिक बुलांदा छा।
कैनी थैं अड़ोसी पड़ोसियों न मिलिक पालि। वु एक टैम क खाण कै का घौर खांद छा दुसर टैम क कै हौर क घौर खै लींद छा, सब्यूं न वै बचपन बटिक अनाथ देखि छा इलै सब्यूं कि हमदर्दि वै दगड़ छै।
कैनी सब्यूं क प्यार और हमदर्दी पैकि आलसी बण ग्या। वु बारा तेरा साल क ह्वै ग्या पर वैक कै भि काम मा मन नि लगदु छा।वु अपण टैम खेतू मा इनै उनै घूमिक निकलदु छा,खाली बैठिक वु बाँसुरी बजांद रैंद छा।

कैनी भौत हि मिठि बाँसुरी बजांद छा वैकि बाँसुरी कि अवाज सुणिक लोग मुग्ध ह्वै जांद छा। कुछ वै इनाम भि दे जांदा छा। इनि टैम बीत ग्या और वु ज्वान ह्वै ग्या। पर वु वन्नी आलसी बण्यू रै ग्या।
वै जैकि व वैकि धर्मपत्नी न पालि छाई वूं वु चचा चची बोलदु छा। चचा चची क नौन भि अब अपण काम पर जांण लग छा।
एक सुबेर कैनी देर तक सिंयू रै। वैकि चची न वै कै दफा उठाण कि कोशिश करि पर कैनी उठण ही नि लगयू छा, चची न गुस्सा म पाणि कि बल्टी वै पर डाल द्या कैनी घबरै कि उठि, चची थैं गुस्सा त पैली आणुं छाई वा बोलि ई क्वी तरीका च इतगा धूप चढ़ ग्या तू अबि तक सियूं छै, अपण चचा कि कमै पर ऐश कनू छै। अफु कमैलु त पता चललु मेनत क्या हूंद?

कैनी ई बात लोगों से भौत सुणि कि खुद कमैलु त पता लगलु,पर वै कभि भि बुरू नि लगु पर आज सुबेर सुबेर चची क गिच न ई शब्द सूणिक वैक दिल मा तीर सि चुभ ग्या, वैन चची से कुछ नि बोलि पर मनमा निश्चय करि कि कि वु घौर तभि लौटलु जब कुछ कमै कन लगल।
कैनी न घौर बटिक जांद दा चचा और चची का खुटा छुयीं और वूंक गौल मिलिक भैर निकल ग्या। बयखुन दा जब कैनी देर तक नि ऐ त जैकी और वैकि जननि कैनी क सुबेर क बदलयां व्यवहार क बारा म चर्चा कन लगीं। कुछ और टैम बितण पर जैकी थैं कैनी कि चिंता हूण लगि और वैन अपणि जननि से बोलि-तिन सुबेर वै डांट लगै इन लगणु कि वु गुस्सा ह्वैकि भाग ग्या।
वीं थैं अब अपणि भूल क ज्ञान ह्वै पर अब कैनी क इंतजार क अलावा कुछ नि किये जा सकदू छा।

इन्नी टैम बितद ग्या हफ्ता बीत ग्या पर कैनी नि लौट। उनै कैनी चलदा चलदा दूर निकल ग्या। रस्ता मा वै भूख लगि पर वैका पास पैसा नि छाया।
चलद चलद वु एक नगर म पौंछ ग्या। वैन वख कै लोगों से काम मांगि, पर वै कखि काम नि मिल। एक त वु क्वी काम जंणदु नि छा, और बिना पछयाण क क्वी काम दीणकु तैयार भि नि छा।
थकिक वु एक डाल क ताल बैठिक जेब म बटिक बाँसुरी बजांण लगि। इत्तफाक न एक संगीतज्ञ अपण घ्वाड़ा मा वख बटिक गुजरणु छा ।वैन कैनी कि बाँसुरी कि मिठठी धुन सुणि और वैकि योग्यता पर मुग्ध ह्वै ग्या। संगीतज्ञ वै अपण दगड़ ले ग्या और वैकि खूब आवभगत करि।
वु संगीतज्ञ राजा क दरबार म गिटार बजैकि राजा क दिल बहलांदु छा। अगल दिन वु राजदरबार गै त कैनी कि खूब प्रशंसा करि। राजा बोलि कि ह्वै सकद कि कैनी सचमा गुणी कलाकार ह्वा पर हम पैल वेकि परीक्षा लीण चंदौ।अगल दिन राजा न अपणा राज्य का बड़ा बड़ा संगीतविदों थैं अपण दरबार म बुलै। सब्या विद्वान अपण अपण वाद्य यंत्र लेकि दरबार म पौंछ गैन। कैनी थैं भि आमंत्रित किए ग्या वैन बाँसुरी जेब म धरि और दरबार म पौंछ ग्या।

सब्या विद्वान अपण अपण वाद्य बजैकि राजा थैं खुश कनकि कोशिश कन लगीं। जब वूं पता चलि कि वु नौन भि संगीत कि परीक्षा दीण कु अंयू च,त कैनी थैं खाली हाथ देखिक हंसण लगीं और खुसुर-पुसुर कन लगीं कि यु छ्वारा वूंकि योग्यता क अगनै कख टिक पालु।
सबका बाद मा कैनी कि बारि ऐ त वैन राजा थैं नतमस्तक ह्वैकि प्रणाम करि फिर वखि धरती म बैठिक बांसुरी बजांण लगि। वैकि बाँसुरी कि धुन सच मा इतगा मिठी छै कि सब्या मंत्रमुग्ध ह्वै कि धुन मा खोऐ गैं।
कैनी न जनि धुन समाप्त करि , राजदरबार तालियों कि गड़गड़ाहट न गूंज ग्या। राजा न कैनी कि प्रशंसा करदा द बोलि- कैनी हम तुमरी योग्यता से खुश छां। बड़ी बात या च कि सबनु हंसी उडै वैका बावजूद तिन अपण आत्मविश्वास नि ख्वै। कै भि व्यक्ति कि योग्यता और आत्मविश्वास वै थैं कखि भि ऊंचाईयो जनै पौंछै सकद।
त्वै मा अपणि योग्यता क घमंड नी।ई भौत खुशी कि बात च हम त्वै दरबार मा नौकरी दींदा छां।राजा कि बात सुणिक कैनी खुश ह्वै ग्या। वु महल क एक कमरा म रैंण लगि। एक मैना बिताण क बाद जब वै पैलि पगार मिलि त वु पैसा लेकि जैकी चचा और चची क पास ग्या वूंथै सरया बात बतैकि अपणि तनख्वाह वूथैं दे द्या।
कैनी कि बथा सूणिक चचा चची भौत खुश ह्वै। वैका पैसा वै थैं हि वापस कैरिक चचा बोलि- बेटा तुम जख भि रै सुखि रै। पर ई बात याद रखि कि क्वी भि कला छवटि नि हूंदि। तेरी बाँसुरी न हि त्वै यख तक पौंछै।
तभि कैनी कि चचि भितर बटिक ऐ और बोलण लगि-ईश्वर कि कृपा से त्वै थैं सब कुछ प्राप्त ह्वै ग्या, अपणि मेनत और लगन से तु तरक्की करदा जै ई आशिर्वाद च।
कैनी चची से लिपटि क बोलि- हां चची मि मेनत कि कीमत पता चल ग्या, अब कभि आलस्य नि करलु और मन लगैकि काम करलु।
चचा चची क आशिर्वाद लेकि कैनी राजदरबार म चल ग्या और सुख से अपण दिन कटण लगि।

अनुवाद- जनप्रिय लेखिका-सरोज शर्मा 

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