आधुनिक सिंहासन बत्तीसी: भाग - 01- रत्नमंजरी

 

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आधुनिक सिंहासन बत्तीसी: भाग - 01

रत्नमंजरी
चुनाव जीतने के बाद आज के एक नेता जी उस कुर्सी पर बैठना चाहते थे जिस पर कभी हमारे एक महान नेता बैठा करते थे। उन्हें किसी ने बताया कि वह कुर्सी कहाँ रखी हुई है। वे एक दिन वहां गए और वे उस कुर्सी पर बैठने के लिए आगे बढ़े।
लेकिन तभी उन्हें लगा कि जैसे वहां एक साथ दर्जनों कन्याएं हंस रही हों। उन्हें लगा यह उनका भ्रम है। जैसे ही वे फिर से कुर्सी पर बैठने लगे, उन्हें लगा जैसे उनके सामने एक परी खड़ी है। तभी वह परी बोली, " महाशय, मेरा नाम रत्नमंजरी है। मैं चाहूंगी कि आप इस पर तभी बैठें अगर आप उस महापुरुष जैसे ईमानदार हैं जो आज से 57 - 58 वर्ष पूर्व इस पर बैठा करते थे। वे कितने ईमानदार थे, यह बताने के लिए मैं एक छोटी सी घटना बताना चाहूंगी। यह सन् 1915 की बात है। उन्हें स्कूल जाने के लिए अपने गाँव के पास बहने वाली नदी को तैरकर पार जाना पड़ता था। नाव में एक आना लगता था लेकिन उनके पास एक आना भी नहीं होता था। एक दिन वे जब नदी के किनारे पहुंचे तो उन्हें वहां दस रुपये का नोट पड़ा मिला। वे उस नोट को मुट्ठी में छुपाये नदी किनारे नाव की इंतजार कर रहे लोगों से पूछने लगे कि क्या किसी का कोई रूपया - पैसा तो नहीं खोया है। शीघ्र ही उन्हें वह आदमी मिल गया जिसका वह नोट था। उस आदमी ने उन्हें बतौर इनाम एक रूपया देना चाहा लेकिन उन्होंने कहा कि यह तो मेरा फ़र्ज़ था और वे उस दिन भी नदी तैरकर अपने स्कूल पहुंचे। अगर आप उन जैसे खुद्दार और ईमानदार हैं तो आप इस कुर्सी पर बैठ सकते हैं।”
नेता जी बोले, " मुझे आज तक कहीं कोई नीचे गिरा नोट मिला ही नहीं। " रत्नमंजरी बोली, " अगर तुम्हें अपनी ईमानदारी पर भरोसा है तो तुम इस कुर्सी पर बैठ सकते हो। " नेता जी खुश होकर जैसे ही कुर्सी पर बैठने लगे, तभी दूसरी परी चित्रलेखा प्रकट हुई।

- सुभाष चंद्र लखेड़ा

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