आधुनिक सिंहासन बत्तीसी: भाग - 09 मधुमालती

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आधुनिक सिंहासन बत्तीसी: भाग - 09

मधुमालती
नेता जी ने मधुमालती से कहा, " आप भी मुझे उस महान इंसान से जुड़ा कोई प्रसंग सुनाना चाहती हैं तो जरूर सुनाइए लेकिन आप मुझे तनिक इस कुर्सी पर बैठने का सुख तो भोगने दीजिये। "
मधुमालती बोली, " उस महान इंसान और आप की सोच में कितना बड़ा फर्क है ? वे कुर्सी पर जिम्मेदारियों को निभाने के लिए बैठते थे और आप इसमें सुख भोगने के लिए बैठना चाहते हैं। खैर, मैं आपको उस महान नेता से जुड़ा एक प्रसंग सुना रही हूँ। उन दिनों जब वे गृह मंत्री थे, उनके सरकारी निवास का एक ओर का दरवाजा जनपथ की तरफ था और दूसरा दरवाजा अकबर रोड की तरफ। उस जमाने में आज की तरह मंत्रियों के लिए जेड श्रेणी की सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी। एक दिन दो श्रमिक महिलाएं घास का बोझ उठाये घुमावदार लंबे रास्ते से बचने के लिए जब उनके बंगले के एक दरवाजे से अंदर घुस कर दूसरे दरवाजे से बाहर निकलने की कोशिश में थी तो उन पर एक चौकीदार की नजर पड़ गई। चौकीदार गुस्से में उन्हें अनाप - शनाप बकने लगा। वे उस समय किसी कार्यवश बाहर आए तो उन्हें शोर सुनाई पड़ा। वे तत्काल चौकीदार के पास जाकर बोले,' तुम्हें इन गरीब औरतों के सर पर रखा हुआ बोझ नजर नहीं आ रहा जो तुम उन्हें यूं रोके हुए खड़े हो ? उन्हें इस रास्ते से बाहर जाने दो।'
मैं यह जानना चाहती हूँ कि क्या आप भी मेहनतकश लोगों के प्रति ऐसा ही दया भाव रखते हैं, यदि " हाँ " तो आप इस कुर्सी पर जरूर विराजिए। " मधुमती की बात सुनकर आज का वह नेता बोला, " आज यह संभव नहीं है क्योंकि आज तो बंगले के अंदर यूं किसी के घुसने का सवाल ही नहीं उठता। इसलिए यह सवाल वर्तमान परिस्थितियों के अनुकूल नहीं है। " तत्पश्चात, नेता जी जैसे ही कुर्सी की तरफ बढे, दसवीं परी प्रभावती कुर्सी के सामने आ खड़ी हुई।

- सुभाष चंद्र लखेड़ा

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