आधुनिक सिंहासन बत्तीसी: भाग - 10 -प्रभावती

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आधुनिक सिंहासन बत्तीसी: भाग - 10

प्रभावती
प्रभावती को देख नेता जी सोचने लगे ये अब न जाने मुझे कौन सा प्रसंग सुनाती है। तभी प्रभावती हंसते हुए बोली, " आपको तो लगता ही नहीं होगा कि ऐसे सरल स्वभाव का व्यक्ति भी राजनीति में इतने ऊपर पहुँच सकता है। खैर, मैं तुम्हें उनसे जुड़ा एक और प्रसंग सुनाना चाहती हूँ। एक बार उनकी अलमारी साफ़ की गई और उसमें से अनेक फटे पुराने कुर्ते निकाल दिये गए। जब उन्हें मालूम हुआ तो उन्होंने वे कुर्ते वापस रखवाते हुए कहा, 'अब नवम्बर आयेगा; जाड़े के दिन होंगे, तब ये सब काम आयेंगे। ऊपर से कोट पहन लूँगा न।'
उनका खादी के प्रति इतना अधिक अनुराग था कि उन्होंने फटे - पुराने कुर्तों की तरफ इशारा करते हुए कहा, ' ये सब खादी के कपड़े हैं। बड़ी मेहनत से बनाए हैं बुनकरों ने। इनका एक-एक सूत काम आना चाहिए। ' उनकी सादगी और किफायत का यह आलम था कि एक बार उन्होंने अपना फटा हुआ कुर्ता अपनी पत्नी को देते हुए कहा, ' इनके रूमाल बना दो। ' यदि इस सादगी और किफायत से आपको भी प्यार है तो सचमुच इस कुर्सी पर बैठ सकते हैं। "
नेता जी बोले, " ऐसे लोगों से सभी को प्यार होता है। अभी तो मैंने मंत्री पद की शपथ भी नहीं ली है। मैं अभी से इस बाबत कुछ नहीं कह सकता हूँ। " तत्पश्चात, वे अपनी बात समाप्त कर जैसे ही कुर्सी की तरफ बढ़े, ग्यारहवीं परी त्रिलोचना प्रकट होते हुए बोली, " मेरी बात सुनने के बाद आप इस कुर्सी पर बैठेंगे तो वह आपके लिए शुभ होगा। "

- सुभाष चंद्र लखेड़ा

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