उत्तराखंड की लगूली
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आधुनिक सिंहासन बत्तीसी: भाग - 11
त्रिलोचना
नेता जी त्रिलोचना की तरफ देखने लगे। वह बोली, " इस कुर्सी पर बैठने वाले हमारे वे महान नेता पहले खुद किसी कार्य को करते थे और फिर जनता से वैसा करने के लिए कहते थे। देश में खाद्यान्न संकट उत्पन्न होने पर अमेरिका के प्रतिमाह अन्नदान देने की पेशकश पर वे तिलमिला उठे थे किंतु संयत वाणी में उन्होंने देश का आह्वान किया- ' पेट पर रस्सी बाँधो, साग-सब्जी ज्यादा खाओ; सप्ताह में एक शाम उपवास करो। हमें जीना है तो इज्जत से जिएँगे वरना भूखे मर जाएँगे। बेइज्जती की रोटी से इज्जत की मौत अच्छी रहेगी।'
इतना ही नहीं, उन्होंने अपने निवास पर तक खेती करने की व्यवस्था की। वे खुद अपने परिवार के साथ उपवास रखते थे।उनके आग्रह करने से उन दिनों देश भर में सप्ताह में दो दिन गेहूं की जगह मक्का की रोटी बनती थी। उनके कहे को लोग सहजता से मान लेते थे। मैं आपसे पूछना चाहती हूँ कि क्या आपकी कथनी और करनी के बीच भी वैसा ही तालमेल है ? यदि " है " तो आप इस कुर्सी पर जरूर बैठें। "
त्रिलोचना की बात सुनकर नेता जी को लगा कि अभी तो उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जिससे कथनी और करनी का सवाल पैदा होता हो। फलस्वरूप, वे सकारात्मक ढंग से सर को हिलाते हुए कुर्सी की तरफ बढ़े ही थे कि तभी बारहवीं परी पद्मावती प्रकट होकर बोली, " नेता जी, रुकिए; अभी तो मुझे भी आपको कुछ बताना है। "
- सुभाष चंद्र लखेड़ा
#आधुनिक_सिंहासन_बत्तीसी_सुभाष_चंद्र_लखेड़ा
त्रिलोचना
नेता जी त्रिलोचना की तरफ देखने लगे। वह बोली, " इस कुर्सी पर बैठने वाले हमारे वे महान नेता पहले खुद किसी कार्य को करते थे और फिर जनता से वैसा करने के लिए कहते थे। देश में खाद्यान्न संकट उत्पन्न होने पर अमेरिका के प्रतिमाह अन्नदान देने की पेशकश पर वे तिलमिला उठे थे किंतु संयत वाणी में उन्होंने देश का आह्वान किया- ' पेट पर रस्सी बाँधो, साग-सब्जी ज्यादा खाओ; सप्ताह में एक शाम उपवास करो। हमें जीना है तो इज्जत से जिएँगे वरना भूखे मर जाएँगे। बेइज्जती की रोटी से इज्जत की मौत अच्छी रहेगी।'
इतना ही नहीं, उन्होंने अपने निवास पर तक खेती करने की व्यवस्था की। वे खुद अपने परिवार के साथ उपवास रखते थे।उनके आग्रह करने से उन दिनों देश भर में सप्ताह में दो दिन गेहूं की जगह मक्का की रोटी बनती थी। उनके कहे को लोग सहजता से मान लेते थे। मैं आपसे पूछना चाहती हूँ कि क्या आपकी कथनी और करनी के बीच भी वैसा ही तालमेल है ? यदि " है " तो आप इस कुर्सी पर जरूर बैठें। "
त्रिलोचना की बात सुनकर नेता जी को लगा कि अभी तो उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जिससे कथनी और करनी का सवाल पैदा होता हो। फलस्वरूप, वे सकारात्मक ढंग से सर को हिलाते हुए कुर्सी की तरफ बढ़े ही थे कि तभी बारहवीं परी पद्मावती प्रकट होकर बोली, " नेता जी, रुकिए; अभी तो मुझे भी आपको कुछ बताना है। "
- सुभाष चंद्र लखेड़ा
#आधुनिक_सिंहासन_बत्तीसी_सुभाष_चंद्र_लखेड़ा
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