उत्तराखंड की लगूली
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आधुनिक सिंहासन बत्तीसी: भाग - 12
पद्मावतीनेता जी को समझ नहीं आ रहा था कि ये परियां उन्हें ये प्रसंग क्यों सुना रही हैं कि तभी पद्मावती बोली, " मैं जानती हूँ कि आप इस वक़्त क्या सोच रहे हैं ? दरअसल, इस देश के नेता कुर्सी पर लोक सेवा के लिए नहीं अपितु निज लाभ के लिए बैठना चाहते हैं। ये सभी बात तो गांधी जी की करते हैं किन्तु खुद राजाओं की तरह रहते हैं। चुनावों के बाद ये लोगों से तभी मिलते हैं जब अगला चुनाव आता है। खैर, जो महान नेता कभी इस कुर्सी पर बैठा करते थे, वे जन भावनाओं का बहुत ख्याल रखते थे। एक बार जब वे रेल मंत्री थे, वे मुंबई जा रहे थे। उनके लिए प्रथम श्रेणी का डिब्बा लगा था। गाड़ी चलने पर वे बोले, 'डिब्बे में काफी ठंडक है, वैसे बाहर गर्मी है।' उनके पीए ने कहा, 'जी, इसमें कूलर लगाया गया है।' उन्होंने पैनी निगाह से उन्हें देखा और आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा, 'कूलर लग गया है?आप लोग पहले मुझसे पूछते क्यों नहीं ? क्या सारे लोग जो इस गाड़ी में चल रहे हैं, उन्हें गरमी नहीं लगती होगी ?'
फिर वे कुछ सोचते हुए बोले, 'कायदा तो यह है कि मुझे भी तृतीय श्रेणी में चलना चाहिए, लेकिन यदि उतना नहीं हो सकता है तो जितना हो सकता है उतना तो करना चाहिए।' उन्होंने नाराज होते हुए कहा, 'बड़ा गलत काम हुआ है। गाड़ी जहाँ भी रुके, पहले कूलर निकलवाइए ।' मथुरा स्टेशन पर गाड़ी रुकी और कूलर निकलवाने के बाद ही गाड़ी आगे बढ़ी। "
फिर पद्मावती ने नेता जी से पूछा, " क्या आप भी ऐसा ही करते ?" नेता जी बोले, " आजकल हम लोग ट्रेन में एसी प्रथम श्रेणी के डिब्बों में चलते है और उसमें कोई कूलर लगाने की जरूरत ही नहीं पड़ती है । " कूलर समस्या से पल्ला झाड़ते हुए नेता जी उस कुर्सी की तरफ बढे ही थे कि तभी तेरहवीं परी कीर्तिमती उनके और उस कुर्सी के बीच प्रकट हो गई।
- सुभाष चंद्र लखेड़ा
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