उत्तराखंड की लगूली
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आधुनिक सिंहासन बत्तीसी: भाग - 13
कीर्तिमतीकीर्तिमती गंभीर स्वर में बोली," महोदय, आपको एक बात सदैव ध्यान में रखनी होगी कि कुर्सी एक निर्जीव वस्तु है। फिर कुर्सी कैसे किसी का सम्मान बढ़ा सकती है ? दरअसल, यह तो व्यक्ति है जिसकी वजह से कुर्सी के साथ सम्मान जुड़ता है। कोई इसके सम्मान को बढ़ाता है तो कोई उसे गिराता है। इसलिए आप यह मत सोचिए कि इस कुर्सी पर बैठने से आप महानता के हक़दार हो जाएंगे। मैं आपको उस महापुरुष से जुड़ा एक और प्रसंग सुनाना चाहती हूँ। एक बार वे अपने परिवार की महिलाओं के लिए साड़ियां खरीदने किसी दुकान में पहुंचे। दुकानदार खुश था कि आज देश की इतनी बड़ी हस्ती उसकी दुकान में पधारी है। वह उत्साह में उन्हें महंगी - महंगी साड़ियां दिखाने लगा। उन्होंने उससे जब सस्ती साड़ियां दिखाने के लिए कहा तो उसने अदब से कहा कि आप सिर्फ साड़ियां पसंद करें। पैसों के बारे में सोचकर आप मुझे शर्मिंदा न करें। वे थोड़ा नाराज होते हुए बोले कि उन्हें साधारण साड़ियां चाहियें क्योंकि उनके घर में सभी लोग सादगी को तवज्जो देते हैं। उस दिन उन्होंने उस दुकान से काफी काम कीमत वाली चार - पांच साड़ियां खरीदी और उनका पैसा भुगतान कर उस दुकानदार को हमेशा के लिए यह सबक दे गए कि अभी भी सादगी बनाए रखते हुए एक सुखद जीवन बिताने वाले लोग मौजूद हैं। "
फिर कुछ सोचते हुए कीर्तिमती ने कहा, " अगर आप भी अपने को उन जैसा मानते हैं तो मेरी तरफ से आपको इस कुर्सी पर बैठने की अनुमति है। "
नेता जी ने सोचा कि वे तो कभी आज तक साड़ी खरीदने गए ही नहीं, फिर परेशानी किस बात की ? ऐसा विचारते हुए जैसे ही उन्हें कुर्सी पर बैठने की सूझी, चौदहवीं परी सुनयना उनका ध्यान खींचते हुए बोली, " मैं भी आपको उस महान हस्ती से जुड़ा एक प्रसंग सुनाऊंगी। कुर्सी पर बैठने के लिए आपका यह उतावलापन आपको नुकसान भी पहुंचा सकता है। "
- सुभाष चंद्र लखेड़ा
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