उत्तराखंड की लगूली
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आधुनिक बेताल चौबीसी ( कथा - 14 )
प्रकृति का क़हर
मूसलाधार बारिश शुरू हो चुकी थी। ऐसे में पेड़ से शव को उतारने में राजा विक्रम को बहुत कष्ट उठाना पड़ा। शव भीगने की वजह से भारी हो चुका था। आज राजा जल से लबालब रास्ते पर धीरे - धीरे चलने को मजबूर थे।
वही कोई दो सौ कदम चले होंगे, बेताल हँसते हुए बोला, " राजन, किया किसी ने और भरना आपको पड़ रहा है। खैर, मेरा आज का सवाल भी इसी से जुड़ा हुआ है। राजन, जून 2013 में उत्तराखंड में और सितंबर 2014 में जम्मू - कश्मीर में अतिवृष्टि करके प्रकृति ने जो कहर बरपाया है, उसके लिए कौन जिम्मेदार है ?"
राजा विक्रम बोले, " बेताल, तुम जान बूझकर सरल सवाल पूछते हो ताकि मेरा मौन भंग हो जाए। बहरहाल, जब मनुष्य प्रकृति को बंधुआ मजदूर या अपना गुलाम बनाने लगता है तो प्रकृति उन बंधनों को तोड़ने के लिए छटपटाने लगती है। इन हिमालयी राज्यों में ऐसा ही हुआ। यहाँ नदियों को बांधने और पहाड़ों को तोड़ने के जो कार्य हुए, उनसे लाखों वर्षों से बना प्राकृतिक संतुलन गड़बड़ा गया। पानी ने बता दिया कि उसे भी आजादी पसंद है। तुम उसे धरती पर बांधोगे तो वह आसमान में पहुंचकर अपना रोष प्रकट करेगा। बेताल, जनता को प्रकृति से की जाने वाली इस छेड़छाड़ का एकजुट होकर विरोध करना चाहिए अन्यथा चाहे किसी ने भी किया हो, ऐसे अवैज्ञानिक कार्यों के दुष्परिणाम तो देर - सबेर सभी को भोगने पड़ते हैं। "
" वाह विक्रम, वाह ! जवाब तो मैं जानता था लेकिन तुम्हारे अंदाजे बयां का तो मैं आशिक हो गया हूँ। " इतना कहने के बाद बेताल फिर उस सिरस के पेड़ पर पहुँच गया जहाँ से कुछ देर पहले उसे उतारा गया था।
- सुभाष चंद्र लखेड़ा
#आधुनिक_बैताल_चौबीसी_सुभाष_चंद्र_लखेड़ा
प्रकृति का क़हर
मूसलाधार बारिश शुरू हो चुकी थी। ऐसे में पेड़ से शव को उतारने में राजा विक्रम को बहुत कष्ट उठाना पड़ा। शव भीगने की वजह से भारी हो चुका था। आज राजा जल से लबालब रास्ते पर धीरे - धीरे चलने को मजबूर थे।
वही कोई दो सौ कदम चले होंगे, बेताल हँसते हुए बोला, " राजन, किया किसी ने और भरना आपको पड़ रहा है। खैर, मेरा आज का सवाल भी इसी से जुड़ा हुआ है। राजन, जून 2013 में उत्तराखंड में और सितंबर 2014 में जम्मू - कश्मीर में अतिवृष्टि करके प्रकृति ने जो कहर बरपाया है, उसके लिए कौन जिम्मेदार है ?"
राजा विक्रम बोले, " बेताल, तुम जान बूझकर सरल सवाल पूछते हो ताकि मेरा मौन भंग हो जाए। बहरहाल, जब मनुष्य प्रकृति को बंधुआ मजदूर या अपना गुलाम बनाने लगता है तो प्रकृति उन बंधनों को तोड़ने के लिए छटपटाने लगती है। इन हिमालयी राज्यों में ऐसा ही हुआ। यहाँ नदियों को बांधने और पहाड़ों को तोड़ने के जो कार्य हुए, उनसे लाखों वर्षों से बना प्राकृतिक संतुलन गड़बड़ा गया। पानी ने बता दिया कि उसे भी आजादी पसंद है। तुम उसे धरती पर बांधोगे तो वह आसमान में पहुंचकर अपना रोष प्रकट करेगा। बेताल, जनता को प्रकृति से की जाने वाली इस छेड़छाड़ का एकजुट होकर विरोध करना चाहिए अन्यथा चाहे किसी ने भी किया हो, ऐसे अवैज्ञानिक कार्यों के दुष्परिणाम तो देर - सबेर सभी को भोगने पड़ते हैं। "
" वाह विक्रम, वाह ! जवाब तो मैं जानता था लेकिन तुम्हारे अंदाजे बयां का तो मैं आशिक हो गया हूँ। " इतना कहने के बाद बेताल फिर उस सिरस के पेड़ पर पहुँच गया जहाँ से कुछ देर पहले उसे उतारा गया था।
- सुभाष चंद्र लखेड़ा
#आधुनिक_बैताल_चौबीसी_सुभाष_चंद्र_लखेड़ा
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