उत्तराखंड की लगूली
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आधुनिक सिंहासन बत्तीसी: भाग - 14
सुनयनासुनयना बोली," हमारा देश इस कुर्सी पर बैठने वाले उस महान नेता की सादगी और ईमानदारी का कायल था और आगे भी रहेगा। वर्ष 1962 में जब वे केंद्रीय मंत्री थे, लोकसभा चुनाव हो रहे थे। प्रचार के लिए वे परिवार के साथ इलाहाबाद से निकले तो कुछ दूर जाने पर उनकी जिप्सी खराब हो गई। उनके कहने पर उधर से जाती हुई रोडवेज बस रुकवाई गई। वे परिवार के साथ बस में सवार हो गए। परिचालक से टिकट बनाने को कहा, लेकिन वह टिकट बनाने को राजी नहीं था। उन्होंने उसे समझाया कि अभी वे चुनाव प्रचार कर रहे हैं। यह एक निजी कार्य है और इसलिए वे टिकट जरूर बनवायेंगे। उनके तर्क और आदेश के आगे परिचालक को उनके टिकट बनाने ही पड़े।
यदि आप भी निजी कार्य के लिए सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग नहीं करेंगे तो आप इस कुर्सी पर बैठने के हक़दार हैं अन्यथा नहीं। " नेता जी बोले, " अभी तक तो ऐसा कोई मौका नहीं आया है जब मुझे रोडवेज की बस में यात्रा करने का मौका मिला हो। फलस्वरूप, मेरा इस कुर्सी पर बैठने का हक़ बनता है। "
खैर, इधर नेता जी के कदम कुर्सी की तरफ बढे ही थे कि पंद्रहवीं परी सुन्दरवती ने उन्हें टोकते हुए कहा, " मुझे नहीं लगता है कि आपको उस महान नेता जी से जुड़ा खुद्दारी का यह प्रसंग सुने बिना इस कुर्सी पर बैठना चाहिए। "
- सुभाष चंद्र लखेड़ा
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