आधुनिक बेताल चौबीसी ( कथा - 17 )-पब्लिक स्कूल

उत्तराखंड की लगूली

 उत्तराखंड देवभूमि  I अनछुई सी तृप्ति  I  ढुंगा - गारा  I  आखर - उत्तराखंड शब्दकोश  I उत्तराखंड I गढ़वाली शब्दों की खोज कुमाउनी शब्द संपदा I उत्तराखंडी यू ट्यूब I  कवितायें I कुमाउनी शब्द संपदा I उत्तराखंडी यू ट्यूब I उत्तराखंड संस्कृतिकवितायें 

आधुनिक बेताल चौबीसी ( कथा - 17 )

पब्लिक स्कूल
राजा विक्रम उस हंसते हुए बेताल को निरपेक्ष भाव से देखते हुए सिरस के उस पेड़ के पास जा पहुंचे। उन्होंने फिर से पेड़ पर चढ़कर शव को उतारा और उसे लेकर अपपने गंतव्य की तरफ चल पड़े।
अभी वे सोच ही रहे थे कि आज बेताल उन्हें कौन सा सवाल पूछेगा, बेताल हंसते हुए बोला, " राजन, यश की कामना के वशीभूत इंसान कई बार किसी ऐसे काम को भी हाथ में ले लेता है जिसके अंजाम का उसे थोड़ा सा भी अंदाजा नहीं होता है। खैर, आज का मेरा सवाल थोड़ा सा टेढ़ा है और यह कुछ लोगों को गुस्सा भी दिला सकता है। मुझे उसकी परवाह नहीं। राजन, मैं आपसे यह जानना चाहता हूँ कि अपने देश में सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक अपने बच्चों को तथाकथित पब्लिक स्कूलों में क्यों भर्ती कराते हैं ? "
विक्रम बोले, " बेताल, पहली बात तो यह है कि सरकारी स्कूलों के अध्यापकों को पता होता है कि उनके यहां पढ़ाई का स्तर क्या है ? दूसरी बात यह है कि बच्चे को पब्लिक स्कूलों में भर्ती कराना एक सामाजिक प्रतिष्ठा का घटक बन गया है। यदि कोई अपने बच्चे को सरकारी स्कूलों में भर्ती कराता है तो उसे यह महसूस कराया जाता है जैसे उसकी कोई सामाजिक हैसियत ही नहीं है।"
राजा विक्रम के जवाब को सुनकर बेताल बोला, " राजन, आपका कहना सही है। झूठी सामाजिक प्रतिष्ठा पाने के चक्कर में कई लोग अक्सर ऊल - जलूल काम करते रहते हैं। " ऐसा कहने के तुरंत बाद वह फिर शव के साथ सिरस के पेड़ पर जा पहुंचा।

- सुभाष चंद्र लखेड़ा
#आधुनिक_बैताल_चौबीसी_सुभाष_चंद्र_लखेड़ा

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ