आधुनिक बेताल चौबीसी ( कथा - 19 ) नेता और पाखंड

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आधुनिक बेताल चौबीसी ( कथा - 19 )

नेता और पाखंड
विक्रम बेताल की चतुराई से परेशान तो थे लेकिन वे ये जानते थे कि कभी न कभी वह ऐसा सवाल पूछेगा जिसका जवाब देना उनके लिए भी संभव नहीं होगा। तब वे मुर्दे को चुपचाप उस तांत्रिक तक पहुंचा देंगे जिसने इसे लाने का अनुरोध किया है।
झुंझलाहट को काबू में करते हुए वे पेड़ के पास पहुंचे और मुर्दे को उतार कर उसे कंधे पर डालकर चलने लगे। कुछ देर की खामोशी के बाद बेताल पहले तो खूब हँसा और फिर बोला, " राजन, मैं जानता हूँ कि तुम यह काम लोक हित में नहीं अपितु अपने निज हित के लिए कर रहे हो और इसीलिये मुझे हंसी आयी है। जब राजा विक्रम जैसा महाप्रतापी राजा एक पाखंडी के बहकावे में आ सकता है तो फिर साधारण लोगों को तो आसानी से बहलाया - फुसलाया जा सकता है। खैर, मेरा आज का सवाल तो यह है कि इतना वैज्ञानिक ज्ञान उपलब्ध होने के बावजूद आज भी हमारे देश में लोग कुछ पाखंडियों को भगवान क्यों मानने लगते हैं ? आज भी कुछ लोग अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए ओझाओं की शरण में क्यों जाते हैं ?"
विक्रम हँसते हुए बोले, " बेताल, क्या कभी तुमने किसी बड़े नेता को इन पाखंडियों के खिलाफ बोलते देखा है ? जब भी किसी पाखंडी का दुराचार सामने आता है, हमारे ये तथाकथित बड़े नेता " कानून अपना काम करेगा " कहकर चुप्पी साध लेते हैं। रही बात वैज्ञानिक जागरूकता की तो हमारे वैज्ञानिक आम जनता के बीच कभी जाते ही नहीं। वे तो अपनी अगली विदेश यात्रा के लिए जोड़तोड़ करने में व्यस्त रहते हैं। ऐसे में आम जनता भला इस तिलस्म से बाहर कैसे आ पायेगी ?"
" ठीक कहते हो राजन ! लगता है हम बेतालों को ही कुछ करना पड़ेगा " बोलकर बेताल उस मुर्दे के साथ फिर सिरस के पेड़ पर जा पहुंचा।

- सुभाष चंद्र लखेड़ा
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