उत्तराखंड की लगूली
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आधुनिक बेताल चौबीसी ( कथा - 21 )
सुविधा शुल्क
सिरस के पेड़ के पास जाकर विक्रम फिर उस मुर्दे को उतार कर नीचे लाए और उसे कंधे पर लेकर फिर अपने गंतव्य की तरफ चल पड़े। बेताल ने हँसते हुए कहा, " राजन, मुझे लगता है कि किसी न किसी दिन तुम यह मुर्दा ले जाने में सफल हो जाओगे। तब मुझे इस मुर्दे के शरीर को छोड़ना पड़ेगा। खैर, भविष्य की चिंता हम अभी से क्यों करें जबकि वह अनिश्चित है। बहरहाल, आज मैं आपकी राय एक ऐसे मुद्दे पर लेना चाहता हूँ जिससे पूरा देश दुखी और परेशान है। रिश्वतखोरी इस कदर बढ़ गई है कि लोग इसे " सुविधा शुल्क " कहने लगे हैं। लोग अपने विवाह योग्य बेटे की चर्चा करते समय यह बताना नहीं भूलते कि उनके बेटे की ऊपरी कमाई कितनी है ? कन्या पक्ष वाले भी ऐसे कोहिनूर दामाद को पाने के लिए दहेज़ की रकम को थोड़ा और बढ़ा देते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि आजकल यह जुमला काफी सुनने को मिलता है कि ' यदि मौका मिले तो पैसा किसे बुरा लगता है ? ' राजन, क्या आप भी ऐसा ही मानते हैं कि ' कोई तभी तक ईमानदार रहता है जब तक उसे मौका नहीं मिलता है ' ? "
बेताल की बात को सुनकर विक्रम बोले ," बेताल, ऐसे जुमले भ्रष्ट लोग बनाते हैं ताकि वे अपनी बेईमानी पर पर्दा डाल सकें। दरअसल, आज भी ऐसे लोग करोड़ों की संख्या में हैं जो सिर्फ ईमानदारी की रोटी खाते हैं। मैं ऐसे जुमले फेंकने वालों से सिर्फ एक सवाल पूछना चाहूंगा कि क्या मौका मिलने पर वे अपनी बहन - बेटी का सौदा करेंगे ? मैं जानता हूँ कि तब उनका जवाब होगा " नहीं " और यह भी हो सकता है कि वे मेरी जान के दुश्मन बन जाएं। बहरहाल, मुझे भी इन जुमलों को सुनकर इतना ही गुस्सा आता है क्योंकि मौका मिलने पर भी ईमानदार व्यक्ति रिश्वत नहीं लेते हैं। "
बेताल बोला, " राजन, यह मुझे भी पता था लेकिन मैंने तो आपका मौन तोड़ने के लिए यह सवाल पूछा था। " ऐसा कहने के बाद बेताल उस मुर्दे के साथ फिर मसान में खड़े सिरस के पेड़ पर जा लटका।
- सुभाष चंद्र लखेड़ा
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