उत्तराखंड की लगूली
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आधुनिक बेताल चौबीसी ( कथा - 22 )
भ्रष्टाचार
विक्रम खुश थे कि मुर्दे के शरीर में रहने वाला बेताल तक राष्ट्र हित के सवालों पर सोचता है जबकि आम लोग भ्रष्टाचार के इतने अभ्यस्त हो चले हैं कि वे काम के सिलसिले में किसी भी सरकारी दफ्तर में जाने से पहले सिफारिस खोजने के साथ ही बतौर रिश्वत देने हेतु कुछ रुपयों का इंतजाम करके चलते हैं। इन्हीं बातों पर सोचते हुए वे कब सिरस के पेड़ पर चढ़े और कब वे उस मुर्दे को कंधे पर डालकर अपने रास्ते चले, उन्हें पता ही नहीं चला। सब कुछ यंत्रवत होता रहा।
उनकी यह तन्द्रा तो तब टूटी जब बेताल उनसे बोला, " राजन, मैंने देश भर में ऐसा एक भी आदमी नहीं देखा है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ न बोलता हो। चुनाव के दौरान सभी नेता भ्रष्टाचार को समाप्त करने की बात करते हैं। सरकार ने सभी विभागों में सतर्कता अधिकारी नियुक्त करने के अलावा केंद्रीय सतर्कता आयोग का भी गठन किया है। मेरा सवाल है इसके बावजूद भ्रष्टाचार बढ़ता ही क्यों जा रहा है ? "
विक्रम बोले, " हे बेताल, इस सब के मूल में नेताओं द्वारा चुनाव अभियान के दौरान खर्च किया जाने वाला पैसा है। नेता खर्च किये गए पैसे को वसूलने के लिए बेईमानों को पनाह देते हैं। इसका असर पूरे समाज पर पड़ता है। दूसरे हमारी आज की शिक्षा पद्धति में नैतिकता को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है। तीसरे तथाकथित बड़े लोगों का विलासिता पूर्ण जीवन लोगों को भ्रष्ट तरीके अपनाने को उकसाता है। "
" राजा विक्रम, वजह चाहे जो भी हो, महज इस भ्रष्टाचार की वजह से हम अपने पड़ोसी चीन की तरह तरक्की नहीं कर पाए हैं। " बोलकर बेताल मुर्दे को लेकर मसान तरफ उड़ गया।
- सुभाष चंद्र लखेड़ा
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