बाल साहित्य

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बाल साहित्य

सरोज शर्मा
बाल साहित्य लेखन कि परंपरा भौत पुरणि च। नारायण पंडित न पंचतंत्र नौ कि पुस्तक मा कहानियों मा पशु पक्षियों थैं माध्यम बणैकि बच्चों थैं शिक्षा प्रदान करि, कहानि सुनण त बच्चों कि आदत हूंद, कहानि क माध्यम से हम बच्चों थैं शिक्षा दे सकदौं, बचपन मा हमरि ददि, ननी हमरि ब्वै भि हमथैं कहानि सुणांदि छै।कहानि सुणांद सुणांद वु हमथैं कभि परलोक लिजांदि छै त कबि सत्य और यथार्थ से परिचित करांदि छै। साहस, बलिदान, त्याग और परिश्रम इन गुण छन जैका आधार पर व्यक्ति अगनै बड़द, और ई सब्या गुण हमथैं मां से मिलदन। बच्चों क ज्यादा बगत मां दगड़ हि गुजरदु च,मां हि वै शिक्षा, साहित्य कि जानकारी दींद, किलैकि जु हथ पालना झुलंदिन वी हमथै सरया दुनिया कि जानकारि दिंदिन। दरअसल बाल साहित्य क उदेश्य बाल पाठकों क मनोरंजन कन ही नी च अपितु वूंथै जीवन कि सच्चाई से परिचित कराण भि च।आज का बालक भोल का नागरिक छन, वूंथैं जन पढये जाल वन्नी वूंक चरित्र बणलु कहानि क माध्यम से शिक्षा देकि हम वूंक चरित्र निर्माण कैर सकदां। तभि संघर्ष कन लैक ह्वाला। यूं न बड़ ह्वैकि अंतरिक्ष कि यात्रा कन, चांद पर जाला शैद और भि ग्रह मा भि जै सकला। बाल साहित्य का लेखकों थैं बाल मनोविज्ञान कि जानकारी भि हूण चैंद। तभि बाल मन मा उतरिक कहानी लिख सकद। बालकों क मन कोमल हूंद कहानी और कविता से वूंका मन मा शक्ति जगा सकदन। जु वूंक मन मा संस्कार, समर्पण, सद्भाव और संस्कृति बिठा सक।
श्री के.शंकर पिल्लई न बाल साहित्य क संदर्भ म "चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट "कि स्थापना 1957 मा करि।आज यू ट्रस्ट अपणि 50 वीं वर्षगांठ मनाणु च।येकु उद्देश्य बालकों खुण उचित डिजाइनिंग व सामग्री उपलब्ध कराण च।ऐमा पांच से सोलह साल क बच्चों खुण बेहतर बाल साहित्य उपलब्ध च।जनकि: पौराणिक कथाएं: कृष्ण सुदामा, पंचतंत्र कि कहानियां, प्रह्लाद
ज्ञानवर्धक: उपयोगी आविष्कार, पर्वत की पुकार, रंगो कि महिमा, विज्ञान का मनोरंजक खेल।
रहस्य रोमांच: अनोखा उपहार, जासूसों क जासूस, ननिहाल में गुजरे दिन, पांच जासूस,
उपन्यास कहानियां:इंसान का बेटा,गुड्डी, मास्टर साहबमहान व्यक्तित्व: भाग एक से दस तक
वन्य जीवन: अम्मां का परिवार, कुछ भारतीय पक्षी, छोटा शेर बड़ा शेर
पर्यावरण: अनोखे रिश्ते
क्या और कन:कम्प्यूटर, घड़ी, टेलीफोन, रेलगाड़ी
बाल साहित्य कु उदेश्य बालकों कु सर्वांगीण विकास कैरिक देश क आदर्श नागरिक बणाण च।
रोशनलाल उमरवैश्य न बोलि कि बाल साहित्य सब्यूं से दूभर पर अति आवश्यक च,किलैकि कि आज का बालक भोल का नागरिक छन। सालिकराम प्रजापति क शब्दों मा बाल साहित्य वास्तविक मार्गदर्शन कु काम करद।
बालक अपण आसपास जु भि द्यखद वैक व्यक्तित्व पर प्रभाव जरूर पव्ड़द। इनमा बाल साहित्य क महत्व और भि बड़ जांद, बाल साहित्य क उदेश्य मनोरंजन ही नि बल्कि बच्चों थैं समाजिक परिवेश से परिचित कराण भि च। और वूंमा नैतिक मूल्यों क निरोपण कराण भि च।ई जिम्मेदारी अभिभावक और स्कूलों कि भि च।पर दुर्भाग्य से हमर देश मा शिक्षा क अभाव च ,इलै अभिभावक नि समझ पांदा कि बच्चों खुण बुरू भलु क्या च।
मनोहर चमोली जी क अनुसार बाल साहित्य ही वा सामग्री च जैकि सहायता से बच्चों कि मौखिक भाषा मा सुधार ऐ सकद। बच्चों मा संवाद अदायगी क विस्तार ह्वै सकद। प्रश्न करण और उत्तर दीणकि क्षमता क विकास ह्वै सकद, बाल साहित्य क माध्यम से बच्चा कल्पना लोक मा विचरदीं।गढ़वाली मा अबोध बन्धु बहुगुणा, पूरण पंत पथिक, ओमप्रकाश सेमवाल, उमेश चमोला, संदीप रावत, भीष्म कुकरेती कु बाल साहित्य मा उल्लेखनीय योगदान च।अश्विन गौड़ क काम त सर्वत्र प्रशंसनीय च जौंल बाल साहित्य ही नि रचि अपितु बालकों थैं साहित्य रचना हेतु प्रेरित भि करि, बालकों कि रचनाओं थैं प्रकाशन हि नि करै अपितु वूंक प्रचार प्रसार भि कराणा रंदिन।

सरोज शर्मा

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