उत्तराखंड की लगूली
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स्वीलिपिड़ा पहाड़ की
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बस पहाड़ जणद स्वीलिपिड़ा पहाड़ की ।
भाजिगीं सबि अपणा जलुड़ा उपाड़ की ।।
तैळ्या मैळ्या पाळि का दांत निखोळिगीं ।
ख्वळा गिच्चम जगा नि अकल दाड़ की ।।
ससोड़िगीं यख पाणि अर रुंगड़िगीं हवा ।
निख्वर्या किस्मत च यख चौक थाड़ की ।।
फूल पत्ति डाळि सदनि हैरि भैरि नि रैंदी ।
कभि त खुद लगलि यों जलुड़ा जाड़ की ।।
बिरै-बिरैकि लूछिगीं जो म्यारा ढुंगा माटू ।
चौखळ ताड़ि बत्था करणा घेर बाड़ की ।।
रुंदा नि देखु पर कैल हैंसदा भि नि द्याखु ।
कैम बताण जिकुड़ि फर लगीं लताड़ की ।।
©® पयाश पोखड़ा
(संशोधित 2023)
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