भाषा कैन बचाण?

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भाषा कैन बचाण?


बिण्ड्या सि बल!
कविता ल्यखण
पण गढ़वाली म नि बच्याणु
कविता सुणाण पण
गढ़वाली म नि बच्याणु।
कहानी ल्यखण
पण गढ़वाली म नि बच्याणु
संस्मरण ल्यखणी पण
गढ़वाली म नि बच्याणु।
गीत ल्यखणीं पण
गढ़वाली म नि बच्याणु
ग़ज़ल ल्यखणी पण
गढ़वाली म नि बच्याणु।
गीत सुणणीं पण
गढ़वाली म नि बच्याणु
ग़ज़ल सुणाण पण
गढ़वाली म नि बच्याणु।
उपन्यास ल्यखण पण
गढ़वाली म नि बच्याणु
भाषा, साहित्य परैं चर्चा कन
पण गढ़वाली म नि बच्याणु।
ता फिर तुमी बतावा
फिर हमरि भाषा क्या हूण
भाषा कनम बचण अर
भाषा कैन बचाण??
बल! भाषा साहित्य
संस्कृति, सरोकारों न
तबी बचण जब
हमुन वों अपणाण
गढ़वाली म बच्याण अर
जब भाषा मान बढाण।
भैर नि बुन, भितर नि बच्याणु
ब्यौ कारीजों गीतों म
ठुमका लगणीं पण
गढ़वाली म नि बच्याणु।
भै बंदो बल
सिरप किताब छापी
पोथि लेखी भाषा ल नि बचणो!
भाषा परचार होलु ता
भाषा बचलि
भाषा म व्यौहार होलु ता
भाषा बचलि।
जब पुरणि पीढि रचलि
नै पीढ़ी बांचलि
तब भाषा दूर दूर तलक पौंछलि
तब हमरि भाषा बचलि।
जब हमुन
नै पीढि तैं सिखाण
जब भाषा महत्व
जन जन तलक पौंछाण।
तभी भाषा बचलि, रचलि
अर दूर दूर तलक
पौंछलि।
गढ़वाली-कुमाउनी म लेखा
गढ़वाली- कुमाऊनी म बच्यावा।
आवा है बंदो!
भाषा मान बढ़ावा।।

दिनेश ध्यानी।

21 फरवरी, 2023 अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवसै भौत भौत बधै छन।।
हथजुडै़।
उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली।।

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