यादों की दुनिया
पनघट की उम्र बडी
जिस पर मेरी यादों की दुनिया बसी
बावरी मैं जोगन सी
सुन सारंगी मधुवन
करने लगी प्रेम भजन
सारंगी मैं धुन प्रेम की
विरह भी अपना लगता है
खो जाती हूं जनमों के बंधन की यादों मैं
प्रेम उसे भी
प्रेम मुझे भी
चातक सा ये जीवन
बदल गया मेरा
खो गयी मेरे हाथों की रेखा
जिसमें मैंने तुम्हैं था पाना
सप्तपदी के बंधन
हैं ही दुखदाई
उनको निभाना जैसै सौदा हो
पाना ही सब कुछ होता
मीरा मोहन मैं क्या था
विष भी अमृत बन गया
न वेदी
न पंडित
न सप्तपदी के बंधन
निभा दी प्रीत बिन वचन
हवा तो दोपहरी मैं भी सरसराती है
सुकून केवल छांव मैं आता
इस पनघट पर बैठी बैठी
करके इंतजार
नयनों से नीर छुपाती रही
भर ली गागर मैंने
रूला गयी याद तेरी
दमयंती
0 टिप्पणियाँ