उत्तराखंड की लगूली
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कुछ लिखे पन्ने
बस यूँ ही पढ़ लेना उनको
और तुम फिर बिसरा देना
किंचित सुख मिलेगा नैनों को
पर उन्हें ना तुम बिसरा देना
बस यूँ ही पढ़ लेना ...
यहाँ वहाँ मिलूंगा बिखरा
हवा संग उड़ता फिरता रहूंगा
वक्त है तो बटोर लेना उन्हें
फिर शायद! इन हात आऊंगा
बस यूँ ही पढ़ लेना ...
फुरसत ना मिलेगी
देख खुद से फिर पछताने भर की
अफ़सोस रहेगा सदियों भर
खुद को खुद से आजमाने भर की
बस यूँ ही पढ़ लेना ...
कुछ लिखे पुराने पन्ने ही थे वो
लगे क्यों वो अपने अपने से
बरसों की धूल झड़ी उन पर से
आतुर खड़े मिले थे मिलने को वो
बस यूँ ही पढ़ लेना उनको
और तुम फिर बिसरा देना
बालकृष्ण डी. ध्यानी
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