कुछ बदल रहा है***Hindi poetry written by Damayanti Bhatt


कुछ बदल रहा है


कुछ सोच रही
सिमट रही
बिखर रही
पहाड से
खामोश हैं
अपना समझ बैठी थी जिनको
उम्र ढल रही
बालों मैं चांदी चमक रही
उम्र बढ रही
नेह भी बढ रहा
उधार होता तो उतर जाता
बावला नेह बढता ही जा रहा
मन लगने की उम्र नहीं होती
पहाड मैं मौसम देखकर फूल नहीं खिलते
किसी से नेह पा जाना
बडा मान है
किसी पर नेह लुटाना
बडा सम्मान है
जीना भी तब आता
जब जीवन गुजर जाता
रास्ते भी तब दिखते
जब वापस लौट जाने का वक्त आता
पेड से पत्ता टूट कर जुड जाये
इस पतझड
ऐसी तन्हाई आई
जीवन से एक साल कम हो गया
ये पहाड है
यहां मौन मैं भी मीत प्रीत करते हैं
ये पहाड है
पूजा को पट नहीं खोलते
यहां पत्थरों मैं भी प्राण होते हैं।

दमयंती 

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