उत्तराखंड की लगूली
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प्रेम
प्रेम होम करने में निहित है।
अन्तर के तम का,
अहम और वहम का।
कलुषित विचार का,
हृदय के विकार का।
क्रोध के ताप का,
आत्मा के पाप का।
प्रेम उत्सर्ग में अर्पित है।
आहूत कर दीजिए
अपने सारे स्वार्थ को
अपनी झूठी शान को,
अपने अभिमान को।
अपनी कटुता को,
अपनी हठता को।
प्रेम दृष्टिकोण में समाहित है।
दोषों के मध्य की,
खूबियों को जानने की।
मुस्कराते चेहरे की,
उदासियों को समझने की।।
वाचालता में छुपी,
खामोशियों को पहचानने की।
आँखों से छलकते,
मोतियों को बीन लेने की।
©®
अंजना कण्डवाल 'नैना'
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