धरती को नर्क
खेतों में अनाज
क्यारियों में सब्जी साग
कैसे होगा?
चूल्हों की आग
नहीं भभरायेगी
पंदेरों में गागर खाली रह जायेगी
बद्री केदार भी विचार कर रहे
नदियों और गधेरों में
डाम बन रहे
डामों की बनी बिजली से
पराये मुल्क
चकमक हो रहे
बद्री केदार विचार कर रहे
कल के बोये सपने सुनहरे
आज बिखर रहे
डांडी कांठी पाट दी
डाली बोटी काट दी
धरती की कोख फाड़ दी
धरती हो गई प्रचंड
खंड खंड उत्तराखंड
बद्री केदार विचार कर रहे
भरे भंडार
अनाज के कुठार
सब छोड़ लोग जा रहे
कहां रहेंगे?
कहां मनायेंगे त्योहार?
होली और फुलार
कभी सोचेंगे?
कभी संभलेंगे?
कब दिन लौट कर आयेंगे?
कोई नहीं जानता
जेठ,बैशाख
सांझें भी लम्बी होती
बदलता रहता सर्ग
क्यूं बना देते हैं?
मानव
सुन्दर सी धरती को नर्क
दमयंती
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