उत्तराखंड की लगूली
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माँ
कांटा चुभने पर जो आह निकलती है,
तब जो याद आती है ओ माँ होती है!
सारे तीर्थों से भी बड़ी माँ होती है,
अपने बच्चों को सदैव आशीष देती है!!
धरा तो क्या ब्रह्मांड से भी विस्तृत माँ होती है,
सृजन की अनूठी मिशाल माँ होती है!!
खुद भूखी रहकर सबको खिलाती है,
बच्चों को गद्दे में सुलाकर खुद जमीं पर सोती है!
माँ गंगाजल सी निर्मल होती है,
माँ काशी काबा से भी बढ़कर होती है,!
*माँ तुझे नमन*

* ओ पी पोखरियाल
पोखरी गौं*
हाल *दिल्ली बटी*
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