गिरीश सुंदरियालौ नाटक 'असगार' मा चरित्र चित्रण

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गिरीश सुंदरियालौ नाटक 'असगार' मा चरित्र चित्रण

भीष्म कुकरेती

गढवाळी गिताड़ कवि गिरीश सुंदरियालौ 'असगार' पैलो स्वांग खौळ/नाटक संग्रह च जैमा पांच नाटक छन .

'असगार' नाटक 'असगार' खौळ (collection) कु एक स्वांग च.

'असगार' एक आदर्शवादी अर सीख दिन्देर स्वांगऔ ज़ात /कोटि मा आन्द . कथा सपाट ब्वालो या सरल ब्वालो च .

कथा गढवाळि गौंऊँ मा पलायन से जन्मीं समस्या अग्वाड़ी लाणै एक कोशिश लगद. महिमा नन्द की बडी कुटमदारि

च - चार नौं अर वोंका परिवार, बेटी अर वीक परिवार . पण सबि देस उन्द (मैदानी शहरूं ) मा नुँकरी करदार छन .

ड्याराम बस अस्सी सालौ महिमा नन्द अर वैकी घर्वाळी रौंदन. महिमा नन्द औ सबि नौन्याळ चांदन बल वुनको बुबा जी

ड्यारक पुंगड़ बेचीं दयावान जां से शहरूं मा पैसों वजै से वुंका रुक्याँ काम पूरा ह्वेजावन. महिमा नन्द आपन जिंदु

रौंद पुंगड़ो एक दौळ बि बिचणो तैयार नी च. बस अब पुंगड़ पटळ तबि बिकी सकदन जब महिमा नन्द मोरल! यीं कथा मा

छ्वटि छ्वटि हौर कथा बि छन

सरा स्वांग कथा पर कम चरित्र चित्रण पर इ निर्भर च . कथा मा रहस्य नी (अब क्या ह्वाल तब क्या ह्वालनी च )

च त सरा गर्रू चरित्र चित्रण इ उठान्दू.

१- महिमा नन्द (८० साल)

महिमा नन्द औ परिचय पैलि दिए गे - कलजुग मा सतजुगी मनिख. पंडितैं से जीवन यापन अर नामी बिरतिवान . महिमा नन्द इ स्वान्गौ

हीरो च अर दिखे जावो त नाटक की असली कमजोरी बि च. या बात सच बि च बल असलियत मा गढ़वळि गौं मा बूड बुड्या इ संघर्ष करणा छन.

पण नाटक मा महिमा नन्द को संघर्ष संघर्ष णि रै जान्दो जो नाटक मा उदेस्यपूर्ति बान चएंद छौ .जो काम महिमा नन्द न करण छौ आखिरैं

महिमा नन्द औ पुंगड़, पटळ, कूड़ तैं करण पोड़ .

महिमा नन्द तैं पंडित दिखाई त संस्कृतौ श्लोक, अड़ाण वळा अर मुवारों से भरपूर वाक्य चरित्र पर सजदा छन अर बिगरौ इ नि दीन्दन बल्कण मा

चरित्रौ विकास मा मददगार बि छन.

एक वचळयात औ अनुभव कारो - "हाँ! ब्यटा त्यरा ब्व़े बाबुन त पूर्ब जनम तप कर्याँ रैन तबी त वूं तैं इनी संतान

मिले नथर आजकाल कु पुछणु कै तैं .. "

या

" शाबाश ब्यटों , सेवा करिल्या त मेवा पैल्या"

महिमा नन्द अपण घर्वळी गौरा से प्रेम करदो अर वींको सहतर सालकी उमर मा इथगा मेनत से दुखी च पण कुछ कौर सकण मा लाचार च

महिमानंद ग्यानी च पण सिद्धान्तुं तैं एक्जिक्यूट करण मा लाचार च .भाषण दे सकुद पण बदलौ लाण मा अस्क्य च

महिमा नन्द अर प्रभु चरित्रौ बीच यू सम्वाद -

"भुला ! स्य सडक , क्य कंडयाई. भुला, हमर त सबि पणचरा सेर कटे गेन . अर फूका कटेण द्या. जब मेरा नौना -ब्वार्युं तैं याकि

जर्वत इ नी च त मिन बि क्य करण. सी त बवना छन कूड़ी पुंगडा बेचा अर रूप्या हम खुणि भ्याजा

महिमा नन्द भाग्य पर भरवस करदो जन कि या बच्ल्यात -

"भुला तैं धरती को इत्गा तिरस्कार ह्वालू वींको ब्रह्म क्या ब्वालाल. अरे क्या हो ण वींको 'असगार' त जरोर लगल इ "

महिमा नन्द एक आम गढ़वाळी च जो चैक बि कुछ नि कौर सकद .

२- गौरा (७० साल)

महिमा नन्द कि घरवळी नाम गौरा च ज्वा वूं जनान्यूँ प्रतिनिधित्व करदी जौंक नौन्या ळ ब्वारी भैर देस नौकरी करदन

अर यीं उमर मा घौर समाळण पोड़द . गौरा आम भारतीय पुराणी जनानी च जै तैं या त परिस्थिति या समाज हिटान्दू.

३- भार्तु (५५ साल)

भार्तु डिल्ली नौकरी करदो अर वख वैकु नौनू ब्यौ होण वळ च .वैक बुबा जु गाँव इ रौंदन अर भार्तु अपण

ब्व़े बाबू बुल्युं मनेंदर ए कलौ श्रवण कुमार च . रोल छ्वटु च पण कखी ना कखी असरकारी च

४- गज्वा (२३ साल)

गज्वा आजौ गढवाळ मा वीं नै छिंवा ळि क प्रतिनिधत्व करदो जो उदेश्य जाणिक बि उदेस्यहीन च .

छ्वारा छापर गजवा तैं महिमानंद न बिरती बाड़ी सिखयीं च अर वो एक मयळु, कामगति, स्ब्युं दुखसुख मां काम

औण वळु अणब्यवा जवान च. असल मा ये स्वांग मा सूत्रधारौ काम बि करदो .कबि कबि जवानी क जोश

मा कैकी ब्वारी पर कुटक बि लगान्दु

मुन्नी घसेर (२५ साल)

यू चरित्र मै तैं माफिक नि आई बस बीच मा गज्वा क कुटक दिखाणो बान ये सती-सावित्री क चरेतर डाळे

गे।

५- प्रभु (६५ साल ) अर वैकी घर्वळि लक्ष्मी (६० साल)

प्रभु वैकी घर्वळि लक्ष्मी क चरित्र कथा मा आदर्शवाद लांदन. टा जिंदगी देस मा रैन जौन इखाक घौर बेचीं दे छौ.

अब जैक यूंक समाज मा आई की पितर कुड़ी बेचिक ठीक नि कारि

वैकी घर्वळि लक्ष्मी आपन नौनु अर ब्वारी लेकी गाँव आन्दन नयो कुड़ो बान जमीन खरीदन्दन .

य़ी द्वी चरित्र गढवाळी प्रवास्युं वीं जनरेसन का प्रतिनिधत्व करदन जो प्रवास का तरास भुगतणा छन अर

नि चैकि बि कुड़ी बिचदन अर फिर पाप मुक्ति बान वापस अपण घोल मा अन्दन.

सबसे बढिया सीन च जखम लक्ष्मी आपन उजड्यु कूड देखिक एक चीज/वस्तर याद करदी .

प्रभु - अब क्या खुज्या नि छे यां!

लक्ष्मी- मेरी एक दगड्या छे

प्रभु- दगड्या ! क्या दगड्या

लक्ष्मी - छ्वारा ! उर्ख्यळि । या च मेरी दगड्या

६-प्रमोद (३० साल)

प्रभु नौनु प्रमोद पैलि गढ़वाळ मा रयुं, डिल्ली मा नौकरी करद च अर अब आपन बुबा जी क बुल्युं मांदो बल घौरम बि एक कूड़ होण चयेंद.

गढ़वा ळी मुवावरा मा बात करदो जन कि, " चौंद कोट्या बांद ना बरास्युं कि बागण .."

७-परमिला (२५ साल)

परमिला प्रमोद की घरवळी च. गढ़वा ळी समजदी च पण बोली नि सकदी

वा बि आपन परिवारू इच्छा मा साथ दीन्दी

८- पप्पू (३५), मीना (३० ) , किन्नू अर कालू (छ्वटा नौन्याळ )

पप्पू महिमा नन्द औ छ्वटु नौनु च पप्पू अर वैक घरवळी मीना जौंक एक बेटी अर एक नौनु च .

पप्पू भैर नौकरी करद अर आपन बाल बच्चों तैं गां बिटेन आपन दगड लिजाणो आन्द अर ल़ी जान्द .

आखिर किलै वो ड्यार बिटेन आपन बच्चों तैं लिजांद वां पर पप्पू का डाईलौग छन

पप्पू (प्रमोद से) वो ट ठीक च पर (पहाड़ की) सुख शान्ति अर हवा पाणी से पेट थ्वड़ा भ्वरेंद

पप्पू (अपणि ब्व़े से ) - मा खराब त हम तैं बि लगणु च पन बच्चों भविष्य क सवाल च .."

९- रमेश (५५) अर सुरेश (५०) अर १०- कूड़, पुंगड़ आदि

रमेश महिमा नाद औ बड़ो नौनु च त सुरेश म्न्झिलो नौन. नाटककार न यूँ दुयूं तैं खलपात्र बणै पण पात्र चरित्र चित्रण म

स्वांग्कार न यूँ दुयूं तैं अपण अपण हिसाब से आर्थिक रूप से कमजोर बताई अर तबी य़ी द्वी ड्यारो पुंगड़ बिचण चाणा छन

रमेश ( फोन पर सुरेश से )- भूला जब बिटेन दुया नौनु ब्यौ ह्वाई दुई अपना घर मा बिराणा ह्व़े गेन.

कमरा बि द्वी इ छया दुयूं पर युंको कब्जा ह्व़े गे. पैसा हुंद त एक कमरा बणान्दू

सुरेश - मी तैं बि पैसों सख्त जरोरात च . बेटी ब्यौ मा एच.एम् वास्ता साथ हजार रूप्या चयेणा छन ''

फिर रमेश (अपण पिताजी से ) पिताजी ! कुतमदारी कारण इ त दुखी छौं. घरव ळी बीमार रौंदी, मै पर सुगरै

बीमारी च. रै णा तैं एक कमरा नी च, हम द्वी बरामदा मा सीन्दा....

यूँ द्वी चरित्र तैं खलपात्र बणै त दे पण क्वी इन खल काम यूँ से इन नि ह्व़े जु यूँ तैं खल पात्र मानल.

यूँ दुयूं क परिचय मा इ नाटककार न रमेश अर सुरेश तैं आर्थिक रूप से कमजोर बताई दे . इन मा कन कै क

दर्शक खल पात्र से घीण या क्वी हौर गुसा कारल?

बकै चरित्रुं चरित्र चित्रण त ठीक च पण रमेश अर सुरेश को चरित्र विकास मा नाटकार से भयंकर गलती ह्व़े गे.

पैलि कळकळी दिखाओ अर पातर पर सहानुभूति जतावो अर फिर एकदम ऊँ तैं खलपात्र बणाओ त नाटक मा इच्छित

भाव अंकुर्याण /उपजाण मा कठनै त आली इ.

अंत मा घौरे कुड़ी पुंगड़ी आदि रमेश, सुरेश अर पप्पू तैं 'असगार दीन्दन वो क्वी प्रभाव नि छोड़द किलैकि

गिरीश सुंदरियाळ से गल्ति या ह्व़े बल पैलि इ रमेश/सुरेश से सहानुभूति दिखये गे.

पात्र अपण अपण हिसाब से छाळी गढ़वाळी बुल्दन. सुरेश अर रमेश छोडिक हौरुं चरित्र विकास ठीक दिखाए गे

.कथा क बनिस्पत चरित्र नाटक मा हावी छन अर हरेक चरित्र असली इ दिखेंद चाहे

वो खल पात्र इ किलै नि च .

भीष्म कुकरेती

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