उत्तराखंड की लगूली
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मेरी जान हिन्दुस्तान
भाल पर हिमालय मुकुट सा,
सौभाग्य जिसके चमकता है!
पूरब पश्चिम की दिशाओं की,
भुजाओं मे पराक्रम दमकता है!
गोमुख से निकलकर गंगा,
अमृत से धरा को सींचती है!
जन गण की क्षुदा को तृप्त कर,
गंगा सागर मे उतरती है !
मध्य मे जिसका हृदय विशाल,
लगाता गले सबको बिन भेदभाव!
पलती सभ्यता, संस्कृतियाँ अनेक,
फिर भी हैँ हम सब जन एक!
दक्षिण पठार, गंगा तट के मैदान मध्य,
हिंद देश का पर्वत सुशोभित विंध्य!
मां भारती के दक्षिण में रामेश्वरम धाम,
मां भारती की आरती गाता है!
धन, धान्य, अन्न, सुख, सम्पन्न,
गंगा जमुनी संस्कृति में बसते जन!
विविध धर्म, जाति, सम्प्रदाय, पर्व,
हैँ गुलदस्ते के पुष्प मां भारती का गर्व!
यहाँ शहीदों की साँसों से तिरंगा लहराता है,
तोपों की ध्वनियां शहीदों की गाथा कहती हैँ!
सीमा के जवानों की हुंकारों से,
दुश्मन भय से काँपता, थर थराता है!
तिरंगा, मेरा मान मेरा सम्मान मेरा अभिमान
मेरी जान मेरा हिन्दुस्तान
स्वरचित
सादर
ओ पी पोखरियाल
*पोखरी गौं* हाल *दिल्ली बटी
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