उत्तराखंड की लगूली
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● *किरन ने बताया* ● (कविता)
●उन्होने दिया है ये अनमोल जीवन ,तुमने इसे बस यूंही गंवाया ।
●उन्होने दिया था वो प्यारा सा बचपन ,बस्ते मे बोझिल ये तुमने बनाया ।
●उन्होने ही दी थी वो मीठी सी वाणी ,इसे यूं गरजना तो तुमने सिखाया ।
●उन्होने बनाया था सीधा सा प्राणी, इसे चाल चलना तो तुमने सिखाया ।
●उन्होने तो दी थी अनोखी सी प्रज्ञा, इसे वासना मे तो तुमने डुबाया ।
●उन्होनें सजाया था सुंदर वनों को, इन्हे आग आदि से तुमने जलाया ।
●उन्होने बनाया था धरती का आंगन, लाखों को बेघर तो तुमने बनाया ।
●उन्होने ही तृष्णा मिटायी तुम्हारी, पैसों में पानी तो तुमने बिकाया।
●उन्होने तो दी थी पेडों की छाया, तपती जमीं को तो तुमने बनाया ।
●उन्होनें तो दी थी परागों की खुशबू, इसमे प्रदूषण तो तुमने मिलाया ।
●उन्होने दिया था ये नीला सा अंबर ,इसे धूल धूमिल तो तुमने बनाया ।
●उनकी निगाहों में सब ही बराबर, तुमने बडा और छोटा बनाया ।
●अहो तब भी बिगडे हो बालक प्रभु के, कहते हो कितना उन्होने सताया ।
●समझो सुधारो यूं गलती तुम्हारी, भज लो प्रभु को किरन ने बताया ।।
●खुद भी तुम जागो व सबको जगाओ ,अगर सच में कविता ने तुमको जगाया ।
किरन पुरोहित हिमपुत्री
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