उत्तराखंड की लगूली
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चेत जा इंसां
चोर हो कोतवाल को न डांटो
कर्मो की गठरी में कुछ फूल छांटो!
अभी तो लहू दौड़ रहा है काया में,
फिर कहां टिक पाओगे ऊपर वाले की माया में!
पचास में भी पचीसी दिखाते हो,
अपना आइना खुद को ही दिखाते हो!
बस थोड़ा सा और इंतजार करो,
अब भी चेत जाओ तो कुछ नेकी करो!
झूठा दम्भ अब चल नहीं पायेगा,
कुदरत का नियम कहाँ बदल पायेगा!
स्वरचित सादर
ओ पी पोखरियाल
*पोखरी गौं* हाल *दिल्ली बटी*
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