उत्तराखंड की लगूली
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झझराट सी हूँद
अपड़ी बोली म बच्यावा....
अपड़ी बोली बचावा....
झझराट सी हूँद गती म
यु सूणि की....
कि....
......कुछ सालू म
कथगे भाषा बल खत्म ह्वे जाली
अगर यन हमरी दुधबोली दगड़ी होलु
त कु सूणलु बुजुर्ग ब्वे कि खैरी बिपदा
कु सुणलु बाबा जी कु कणाट
द्वी झणो कि रुण्यता तुणयता छवी
कु सुंगलू फुक्याण, कुमर्याण,
खिकराण, सड़यांण, बास....
कु बजालु डौर थकुली, रणनसिंगा
अर कु लगालु मंडाण म जागर
कु बजालु ढोल, दमौ, मसकबाजू,
कु करलु सरैयाँ नाच शुभ कारिजु ब्यो बारातियूँ म
कु द्यालु ब्यौला अर पौणओ थैं गाली
स्याली भीना, बौजी दियुर कि मजाक
पर....
मी भी करदु, तुम भी कारा हम सभी करदा
एक छोटी सी कोशिश......
त शैत च कि हमारी भाषा
बचीं रै जौ...
अपड़ी बोली भाषा थैं बचे कि राखा
अपड़ा नौन्यालू थैं गढ़वाली सिखावा
अपड़ा क्वी भी जाज कारिज म
अपड़ी भाषा बोली का गीत लगावा
अपड़ी बोली भाषा मा कविता, कानी
पजल, गजल कुछ न कुछ ल्याखा
अपड़ी भाषा का लिखवारु कु सम्मान कारा
भाषा पर शासन अर भाषण न कारा
अपड़ी बोली म बच्यावा....
अपड़ी बोली बचावा....
©® ओ पी पोखरियाल
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