उत्तराखंड की लगूली
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जमाना
सोचकर भी देख लिया देखकर भी सोच लिया!
ये जमाना हो गया मतलब का कुछ खास अब नहीं रहा!!
नज़रें झुकाकर देख ली नजरें उठाकर देख ली!
जमाने को शरम नहीं नजरों का कोई दोष नहीं!!
कभी अजनबी राहों में मिले कभी राहें अजनबी मिली!
जमाना तब सराफत का था किसी से कोई सिकवा न था!!
मौन रहना अब अच्छा है एकांत में रहना और भी अच्छा है!
सबसे खुश रहने में अब भलाई है ना कहना ना पूछना ये जमाने का दस्तूर है!!
जबतक हम कुछ कहें ना हम बहुत अच्छे हैं!
तुम्हारी बातों में न आये तो हम बहुत बुरें हैं!!
स्वरचिता
श्रीमती अनूपा कुमेड़ी
सलना नागनाथ पोखरी
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