आधुनिक सिंहासन बत्तीसी: भाग - 15 -सुन्दरवती

 आधुनिक सिंहासन बत्तीसी: भाग - 15

सुन्दरवती

सुन्दरवती बोली, " चाहे अपने लिए या फिर देश के लिए, किसी दूसरे के आगे हाथ फैलाना उन्हें कतई पसंद नहीं था। मैं आपको उनके बचपन का एक प्रसंग बताती हूँ। बचपन में वे एक बार अपने दोस्तों के साथ गंगा नदी के पार मेला देखने गए। शाम को वापस लौटते समय जब सभी दोस्त नदी किनारे पहुंचे तो उन्होंने नाव के किराये के लिए जेब में हाथ डाला। जेब में एक पाई भी नहीं थी। उन्होंने अपने मित्रों से कहा कि वे थोड़ी देर बाद आएंगे। वे नहीं चाहते थे कि उन्हें दोस्तों से नाव का किराया मांगना पड़े। उनका स्वाभिमान उन्हें इसकी अनुमति नहीं दे रहा था। उनके दोस्त नाव में बैठकर नदी पार चले गए। जब नाव आँखों से ओझल हो गई तब उन्होंने अपने कपड़े उतारकर उन्हें सर पर लपेट लिया और नदी में उतर गए । उस समय नदी उफान पर थी। पास खड़े मल्लाहों ने भी उनको रोकने की कोशिश की लेकिन उन्हें खुद पर पूरा भरोसा था। कुछ देर बाद वह सकुशल दूसरी ओर पहुँच गए और वही खुद्दार बालक बाद में इस देश का प्रधानमंत्री बना।
खैर, आप बहुत दिनों से हम परियों के मुंह से उनका नाम सुनना चाहते हैं तो सुनिए । उन्हें यह देश श्री लाल बहादुर शास्त्री के नाम से जानता है। वर्ष 1904 में 2 अक्टूबर को उनका जन्म मुगलसराय, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव पहले प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे और बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में लिपिक की नौकरी की।इस महान नेता की माँ का नाम रामदुलारी था। " फिर कुछ सोचते हुए सुन्दरवती ने कहा, " उनके जन्मदिन पर उनका स्मरण करते हुए पूरे देश को उनके आदर्शों पर चलने की शपथ लेनी चाहिए।"
परी की बात सुनकर नेता जी बोले," मैं भी यही सोच रहा हूँ।" यह कहकर वे जैसे ही कुर्सी पर बैठने लगे, सोलहवीं परी सत्यवती उन्हें रोकते हुए बोली, " धैर्य रखिये, मुझे भी आपको शास्त्री जी के बारे में कुछ बताना है।
"
- सुभाष चंद्र लखेड़ा

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