पहाड मैं***Hindi poetry written by Damayanti Bhatt



 पहाड मैं


पहाड मैं
बीठों_पाखों मैं
घास काटती घसियारी
उसके हाथों की खनकती चूडियां
छुंडकी वाली दरांती
कभी सुनी उनकी भाषा?
हम गढवाली _ हमारा गढवाल
और ये पहाड
धरती ऐसी हंसती बेटी किसांण
भाषा को लिखा कब जाता
मंचों पर, या महलों मैं
भाषा तो समझ आनी चाहिए
भूख लिखी जानी चाहिए
मंचों पर बैठ कर नहीं समझी जाती पीडा
बाग बगीचों की सैर करतै
धार्मिक स्थलों मैं पूजा करके
भाषा लिखी जानी चाहिए
किसी आंख को महसूस करके कि
परिवार की भूख शांत करने के लिए
भोजन कहां से आयेगा
जिन्होनें महसूस नहीं किया भूख को
जो कभी रहै नहीं अंधेरों मैं
देखा नहीं किसी गृहणी को
जो अपने बच्चे को
धूप मैं पीठ पर बांध कर
काम करती है
गर्भ में पाल रही रहती एक और जान को
अगर मातृ भाषा बचानी है तो
पीडा लिखी जानी चाहिए
उसकी भूख लिखी जानी चाहिए
तुम मंचों तक ही सिमट रहे हो
कण कण ऋणी है उसका
सेरा_ मैंडों मैं लहलहाती फसलैं
उसके गीत _उसकी हंसी
इन सबकी भाषा है
उसने प्रेम किया है
घर आंगन खेत _मिट्टी से
हम सब कर्जदार हैं उसके
सिरहाने पर रखी परदेशी की चिट्ठी
आंखें रस्ते पर
आंचल की गांठ पर अपने सपने
अपने सरताज की सलामती
ये सब लिखना
मैं देखना चाहती हूं
उसे प्रेम पाते हुए
चूल्हा लीपते हुए
जूठे बर्तनं मांजते हुए
जिसने जग को जीवन दिया
तुम उसके जीवन मैं
छायादार वृक्ष बनना
उसने तुम्हारी कंटकमय राहों में
अपना आंचल बिछाया है
तुम केवल भाषा के नहीं
उस ममता के कण कण ऋणी हो
जिसने तुम्हें जीवन दिया है।

दमयंती 

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