अदृश्य शक्ति
पुष्प भी जी रहे अवसाद में, ।सुगंध मनुज क्यों भाती नहीं।
इत्र सुगन्धित विविध कृत्रिम,सुगंध पक्ष तक भी जाती नही।
श्वेत श्याम घन गगन कृत्रिम,वो तट सागर से उभर आये नहीं।
प्रकृति प्रदत्त पुष्प पाहन पादप,शिखर शशि सूर्य बना पाए नहीं।
पहुंचे अन्तरिक्ष में सफलता से,पर उस सृष्टि को रच पाये नहीं ।
शक्ति आलौकिक अद्भुत अनन्त,ऊष्म सूर्य तक जा पाये नहीं।
अपवाद अदृश्य दिव्य शक्ति से,ज्ञान विज्ञान मनुज पार पाये नहीं।।
स्वरचित मौलिक
सुरेश कुकरेती
मेरठ( उत्तर प्रदेश)
0 टिप्पणियाँ