मिट्टी -हिंदी कविता***Hindi poetry written by Damayanti Bhatt



मिट्टी


मिट्टी मैं कितने सारे रंग छुपे होते

जितने भी रंग हैं

सब मिट्टी से आये हैं

मिट्टी कितना सहती

मिट्टी कभी मिटती नहीं

मिट्टी घर है जल का

पत्थर भी तो मिट्टी बन जाते

आसमान से बरसा इतना सारा पानी

मिट्टी के आंचल मैं सोया रहता

आसमान जैसे रंग बदलता

उसी तरह मिट्टी भी रंग बदलती

जब मैं छोटी थी

मैं तो मिट्टी खाती थी

मीठी मिट्टी

तब मां कहती मूरख

मिट्टी नहीं खाते

पेट मैं झाडियां उग आयेंगी

हजारों कीडे पड जायेंगे

मैं मान गयी

 मिट्टी मां है

 मिट्टी भी सहती रंजो गम

सहती बोझ उठाती

चोट खाती कांपती  

मां कहती तभी तो भूचाल आता

मां कहती

 जब दो सगे लडते इस मिट्टी के कारन

मिट्टी कहती बावलो

सबको मैंनै खाया

मुझको किसने खाया

 जो भी हो

मेरा तो नीला आकाश  मेरे बाबा

धरती मेरी मां है

जितनी मां के दिल की धडकन 

उतनी मिट्टी की आवाजें

मैं  दस तक गिनती गिनूं

सब चुप

मैं छुप जाऊं

ये मिट्टी मुझे

मां का आंगन याद दिलाती है

मैं बाबा के आंगन की चिडिया

 मटखाने की सोंधी मिट्टी हूं

मैं पूजा का शंख हूं

देहरी की रंगोली

मां की ओढनी मैं

 हंसता हुआ दीप हूं


दमयंती

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