"मुण्ड रौंपा रौंप"***Grhwali Poetry/Garhwali Gajal wrote by Payash Pokhara

 


"मुण्ड रौंपा रौंप"
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मेरा सर्या गौं मा डिल्लि भजणा की चौंप हुईं चा ।
ये डारा को तिबरि-डंडलि मा कौंपा-कौंप हुईं चा ।।

कूड़ि पुंगड़ि कैका भर्वसा रालि, छ्वाडा ना तुम ।
दौड़िगीं क्वी छोड़िगीं यख त छौंपा-छौंप हुईं चा ।।

लकदक नारंगी की डालि को क्वी सैं गुसैं नि रायु ।
बस एक दाणि का बाना यख लौंपा-लौंप हुईं चा ।।

पन्द्यरौं को पाणि सुदि जखि-तखि खत्येणु चा ।
कटगड़ा लोग की डिल्लि मा धौंपा-धौंप हुईं चा ।।

नि सुण्यां कभि क्वी भुक्कि म्वार म्यारा गौं मा ।
किलै निरदया डिल्लिम मुण्ड रौंपा-रौंप हुईं चा ।।

©® पयाश पोखड़ा

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