आधुनिक सिंहासन बत्तीसी : भाग - 32 रूपवती..Modern Throne Battisi Story Part 32 ...END

 


आधुनिक सिंहासन बत्तीसी : भाग - 32
रूपवती


बत्तीसवीं परी रानी रूपवती यकायक नेता जी के सामने प्रकट हुई तो उसे अनुभव हुआ कि नेता जी के अंदर अब इस कुर्सी पर बैठने की लालसा समाप्त हो चुकी है। उसने नेता जी से पूछा, " क्या आप इस कुर्सी पर बैठने की इच्छा रखते हैं ? "


नेता जी बोले, " मैं मानता हूँ कि मैं शास्त्री जी से अपनी तुलना नहीं कर सकता हूँ। मुझे लगता है कि चुनाव जीतने के बाद मुझे अब अपने जीवन दर्शन को सुधारना होगा। यह भी सही है कि मैं सिर्फ इस कुर्सी पर बैठने से शास्त्री जी जैसा नहीं बन सकता। उसके लिए तो मुझे अभी बहुत कुछ करना पड़ेगा। देश की राजनीति को एक नई दिशा देनी पड़ेगी। चुनाव सुधारों के जरिए राजनीति में अपराधियों और भ्रष्ट लोगों को आने से रोकना होगा। नौकरशाही को चुस्त - दुरुस्त करना होगा। जनता के अंदर यह विश्वास पैदा करना होगा कि बिना किसी पहुँच के भी उनके न्यायोचित कार्य हो सकते हैं। समाज के विभिन्न समुदायों के बीच बनी खाइयों को पाटना होगा। राष्ट्रधर्म सभी धर्मों से ऊपर है, प्रत्येक नागरिक के दिलोदिमाग में यह निष्ठां पैदा करनी होगी।"


नेता जी के इन वचनों को सुनकर सभी परियां रानी रूपवती के पास आ खड़ी हुईं। उन्हें एक साथ देख रानी रूपवती बोली, " यह कुर्सी यहां किसी के बैठने के लिए नहीं अपितु सिर्फ यह याद दिलाने के लिए रखी हुई है कि शास्त्री जी जैसे महान लोग भी इसी देश की माटी में जन्मे हैं। आओ, हम सब इस कुर्सी को नमन करें और तत्पश्चात एक दूसरे की कल्याण की कामना करते हुए एक दूसरे से विदा लें। " विचारों में खोये नेता जी ने जैसे ही अपनी गर्दन ऊपर उठाई, तब तक सारी परियां वहां से जा चुकी थी। नेता जी भी कुछ सोचते हुए उस कुर्सी को नमन करते हुए उस कक्ष से अपनी चुनावी सभा के लिए निकल गए।

( समापन ) -
सुभाष चंद्र लखेड़ा


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